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व्रत कथा कोष
तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, पांच सौभाग्यवती स्त्रियों को हल्दी कुकुम फलादिक देवे, उस दिन ब्रह्मचर्यपूर्वक उपवास करे । धर्मध्यान से समय बितावे ।
इस व्रत को पांच वर्ष अथवा पांच महीने तक पालन कर अन्त में उद्यापन करे, उस समय आदिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापन कर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे, २५ नैवेद्य चढ़ावे । पांच मुनियों को आहार दान देकर उपकरण देवे, स्वयं पारणा करे।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में चम्पापुरी नगरी है, वहां पर पहले पुरंधर नाम का राजा अपनी रानी मित्रावति के साथ सुख से राज्य करता था। उस राजा के राजश्रेष्ठि का नाम सुमित्र और उसकी सेठानी का नाम वसुमति था, वो लोग आनन्द से सुख भोग रहे थे।
___ एक समय उस नगरी के उद्यान में वीरसेन नामक प्राचार्य ३०० मुनियों के साथ आये, राजा को समाचार प्राप्त होते ही अपने परिवार सहित उद्यान में गया, वहां राजश्रेष्ठि भी गया, सब लोग हाथ जोड़ नमस्कार करके धर्मसभा में बैठ गये, कुछ समय उपदेश सुनकर, राजा ने विनती की हे गुरुदेव ! हम लोगों को कोई व्रत ऐसा बतानो कि जिससे अनन्त सुख मिले, तब मुनिराज ने कहा कि राजन आप लोग धनकलश व्रत करो, जिससे सुख की प्राप्ति होगी, ऐसा कहकर व्रत का विधान कह सुनाया। राजा ने आनन्द से उस व्रत को स्वीकार किया और सब नगर में वापस लौट आये । नगर में आकर व्रत को प्रानन्द से पालन करने लगे, अन्त में व्रत का उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से अन्त में समाधिमरण कर परम्परा से मोक्ष जायेंगे ।
धनुधसंक्रमण व्रत कथा मार्गशीर्ष में आने वाले धनुसंक्रमण को यह व्रत करे, इस व्रत में पुष्पदन्त तीर्थकर की आराधना करे, सब पूर्वोक्त विधि से अभिषेक पूजा करे, मन्त्र जाप्य पूर्वक आदि व्रत करे, कथा भी वही लेवे ।