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व्रत कथा कोष
और एक प्रकार :
पंचमी और नवमी को उपवास करना और बीच में अर्थात् षष्ठी, सप्तमी और अष्टमी का एकाशन करना यह मध्यम प्रकार है। पांच ही दिन एकाशन करना जघन्य प्रकार है ।
गोविन्द कविकृत व्रत निर्णय
इस व्रत के और प्रकार भी हैं ।
सुदी पंचमी, सप्तमी और नवमी का उपवास व षष्ठी अष्टमी का एकाशन करना यह मध्यम विधि है । यह व्रत भाद्रपद, माघ और चैत्र में भी करना चाहिये ऐसा कई लोगों का मत है । जैन व्रत विधान संग्रह
इस व्रत में केतकी, बेला, चम्पा प्रादि के विकसित सुगन्धित पुष्पों से चौबीस तीर्थंकर की पूजा करनी । इस व्रत से ज्ञान की प्राप्ति होती है । पुष्पांजली का अर्थ पुष्पों का समुदाय, इसमें जाप भी पुष्पों से कहा है ।
इसके उद्यापन के लिये २५ दल का कमलमण्डल निकालना और जलयात्रा, अभिषेक, सकलीकरण आदि कर उद्यापन करना । उसमें छत्र, चामर, भारी, तोरण, घंटा, धूपदान पात्र, चन्दोवा, दीपमाला, भामंडल, पांच बर्तन ५ शास्त्र, २५ नैवेद्य, २५ सुपारी ५ नारियल ५ रत्न २५ चांदी के स्वस्तिक इतनी सामग्री एकत्रित करनी व मांडले के बीच में जिन प्रतिमा विराजमान करनी चाहिए और पूजा करनी चाहिए । जाप व शान्ति विसर्जन करना चाहिए और कम से कम पांच श्रावकों को भोजन कराना चाहिए ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह में सीता नदी के दक्षिण किनारे मंगलावति नाम का एक देश है । उस देश में रत्नसंचयपुर नाम की एक नगरी थी । वह धनधान्य से भरपूर थी । उस समय राजा धनसेन अपनी रानी जयावति सहित वहां राज्य करता था । उनके कोई संतान नहीं थी । अतः वह हमेशा उदास रहता था। एक बार राजा रानी सहित जिनमन्दिर में गया, वहां उसे ज्ञानसागर मुनि के दर्शन हुये ।