________________
व्रत कथा कोष
[३८१
-
-
मंगल प्रारती करे, फिर घर जाकर प्राहारदान सत्पात्रों को देवे, स्वयं उपवास करे, सायंकाल दीपधूप से पूजा करके, जिनसहस्रनामादि स्तोत्र बोलकर, स्वाध्यायादिक करे, उसी प्रकार धर्मध्यान में समय निकाले, दूसरे दिन पूजाभिषेक क्रिया करके सपात्रों को आहारादि दान देकर पारणा करे, इस प्रकार प्रत्येक महिने में उसी तिथि को पूजा करके व्रत करे, इस प्रकार इस व्रत को पांच वर्ष, पांच महीने तक करना चाहिए, यह उत्कृष्ट विधि है। पांच वर्ष तक करना मध्यमविधि है और पांच महिने तक मात्र करना जघन्य विधि है, इस प्रकार इस व्रत को उत्तम, मध्यम, जघन्य किसी भी प्रकार करने के बाद उद्यापन करना चाहिये, उस समय तीर्थंकर की आराधना करके महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को आहारादि चारों प्रकार के दान को देवे, इस प्रकार इस व्रत का विधान है ।
कथा ___ इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वसंततिलक नाम का एक सुन्दर नगर है, वहां सत्पति नाम का एक पराक्रमो नीतिवान व गुणशाली ऐसा राजा सुख से राज्य करता था । उस राजा की मनोहर गुणवान, सुन्दरी प्रियादेवी नाम की पट्टरानी थी, उसो नगर में कोदंड नाम का एक ब्राह्मण रहता था, लेकिन वह ब्राह्मण दीन दरिद्र था, उस ब्राह्मण के प्रिया व कमला नाम की दो स्त्रियां थीं, उसके श्री और संपति ये दो कन्याएं थीं, कालक्रम से एक दिन कोदंड ब्राह्मण यमराज के मुख में चला गया अर्थात् मर गया । तब कमला नाम की स्त्री पति वियोग से बहुत ही दुःखी रहने लगी । सौभाग्य के खंडित हो जाने पर निस्तेज हो गई, पति के मर जाने पर उसको बहुत ही दीन अवस्था प्राप्त हुई, इसलिये उदरपूर्ति के लिये अन्य लोगों के घर जाकर काम करके स्वयं का और दोनों पुत्रियों का पेट भरने लगी, इस प्रकार समय बिताने लगी।
___एक दिन सोतश्री के पिता की बहन कमला के पास आकर श्री को निन्दा करने लगी तब कमला श्री के ऊपर क्रोधित हुई, तब वह श्री उसी समय वहां से घर से बाहर निकली, तब उसको नगर निवासियों से मालम हुआ कि नगर के उद्यान में दमवर महामुनिश्वर पधारे हुये हैं। ऐसा जानते ही श्री मुनिराज के दर्शन को उद्यान में गई और मुनिराज के चरणों में भक्ति से नमस्कार करके बैठ गई।