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व्रत कथा कोष
सुख से रहता था । एक बार उन्होंने सुमतिसागर महामुनि से व्रत लिया, इसका यथाविधि पालन किया, सर्वसुख को प्राप्त किया, अनुक्रम से मोक्ष गये ।
अथ पंचेन्द्रिय जातिनिवारण व्रत कथा
विधि :
- चैत्र शुक्ला ४ को एकाशन और ५ को उपवास करना, सुमतिनाथ तीर्थंकर की पूजा मन्त्र जाप करना चाहिये, पत्त े रखना चाहिए, और सब विधि पूर्वव्रत है ।
पुरन्दर व्रत
यह व्रत किसी भी महिने में कर सकते हैं । परन्तु वर्ष में एक बार ही कर सकते हैं । इसका क्रम सुदी प्रतिपदा से सुदी अष्टमी तक है । इन प्राठ दिन में प्रतिपदा और अष्टमी को प्रोषधोपवास करना व बचे दिनों में एकाशन ( एक भुक्ति) करना । या एक उपवास एक एकाशन ( प्रतिपदा को उपवास द्वितीय को एकशन) ऐसा क्रम से आठ दिन करना । यह व्रत लेने पर बीच में छोड़ना नहीं चाहिए लगातार १२ वर्ष करना चाहिए । पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए, उद्यापन नहीं होने पर दूसरी बार करना चाहिए ।
क्रियाकोष में कहा है कि किसी भी महिने की सुदि प्रतिपदा से अष्टमी तक आठ उपवास करना चाहिए । इन आठ दिनों में गृहारम्भ का त्याग कर मन्दिर में जाकर भगवान जिन्द्रदेव का अभिषेक विधि पूर्वक करना चाहिए । फिर पूजा स्तवन मंत्र जाप वगैरह क्रिया करना चाहिये । नव दिन एकाशन करना । व्रतों के दिनों की रात्रि धर्मध्यानपूर्वक बतावे । भजन स्वाध्याय मनन आदि करना चाहिए | रात्रि के मध्यभाग में थोड़ी सी नींद लेनी चाहिए । फिर उठकर सामायिक करना चाहिए ।
इन आठ दिनों में स्नान, तैल मर्दन, दन्त धावन वगैरह क्रिया का त्याग कहा है । सब उपवास करने की शक्ति नहीं है तो पहले चार उपवास कर एकाशन करना चाहिए और एक ही अनाज खाना चाहिए ।
पुरन्दर व्रत विधि
अथ पुरन्दर व्रतमाह-यत्र तत्र क्वचिन्मासे समारभ्य शुक्लपक्षे प्रतिपदामार