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व्रत कथा कोष
करना चाहिये । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना, उद्यापन की शक्ति न हो तो व्रत दूना करना चाहिये।
...गोविन्द कविकृत वृतनिर्णय अथ परिहारविशुद्धि चारित्र व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करे । अन्तर केवल इतना है १४ के दिन एकाशन करे । १५ के दिन उपवास करे । पूजा वगैरह पहले के समान करे । १५ दम्पतियों को भोजन करावे । वस्त्र आदि दान करे । १०८ फल, पुष्प, केले अर्पण करे । जिनमन्दिर के दर्शन करे ।
कथा पहले सुरेन्द्रपुर नगरी में सुरेन्द्रसेन राजा सुरसुन्दरी अपनी महारानी के साथ रहता था। उसका पुत्र सुरेन्द्रकांत उसकी स्त्री सुरकांता, और शिवाय सुरेन्द्रकीति पुरोहित उसकी स्त्री सुरत्न भूषणा सारा परिवार सुख से रहता था। एक बार उन्होंने सुरकीति और विशालकीर्ति मुनि से व्रत लिया। उस व्रत का विधिपूर्वक पालन किया । सर्वसुख को प्राप्त किया। अनुक्रम से मोक्ष गए।
पुष्पाञ्जलि व्रत की विधि पुष्पाञ्जलिस्तु भाद्रपदशुक्ला पञ्चमीमारभ्य शुक्लानवमीपर्यन्त यथाशक्ति पञ्चोपवासाः भवन्ति ।।
अर्थ :-पुष्पाञ्जलि व्रत भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी से नवमी पर्यन्त किया जाता है । इसमें पांच उपवास अपनी शक्ति के अनुसार किये जाते हैं।
विवेचन :-भादों सुदी पञ्चमी से नवमी तक पांच दिन पंचमेरु की स्थापना करके चौबीस तीर्थंकरों की पूजा करनी चाहिए । अभिषेक भी प्रतिदिन किया जाता है । पांच अष्टक और पांच जयमाला पढ़ी जाती हैं। 'ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्ध्यशीतिजिनालयेभ्यो नमः' मन्त्र का प्रतिदिन तीन बार जाप किया जाता है। यदि शक्ति हो तो पांचों उपवास, अन्यथा पञ्चमी को उपवास, शेष चार दिन रस त्याग कर एकाशन करना चाहिए । रात्रि जागरण विषय कषायों के अल्प करने का