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व्रत कथा कोष
तथा जिनेन्द्र प्रभु के गुणों का चिन्तन करना और सामायिक स्वाध्याय करना भी इस व्रत की विधि के भीतर परिगणित हैं । प्रोषध के दिनों में स्नान, तेल मर्दन आदि क्रियाओं का त्याग करना चाहिए । यदि आठ दिन तक लगातार उपवास करने की शक्ति न हो तो चार दिन के पश्चात् पारणा कर लेनी चाहिए। पारणा में एक ही अनाज तथा एक प्रकार की वस्तु लेनी चाहिए। जिनमें उपर्युक्त प्रकार से व्रत करने की शक्ति न हो वे प्रष्टमी और प्रतिपदा का उपवास करे तथा शेष दिन एकाशन करे । अन्य धार्मिक क्रियाएं समान हैं, स्नान करने वाले को द्रव्य पूजा और स्नान न करने वाले श्रावक को भाव पूजा करनी चाहिए । व्रत के दिनों में प्रतिदिन मोकार मन्त्र का १००८ बार जाप करना चाहिए । एकाशन के दिन तीन बार प्रातः, दोपहर और सन्ध्याको १००८ बार णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिए ।
पञ्चमास चतुर्दशी व्रत, शीलचतुर्दशी श्रौर रूपचतुर्दशी व्रत
पञ्चमासचतुर्दशी तु शुचिश्रावण भाद्रप्राश्विन कार्तिक मास शुक्ल चतुर्दशी - पर्यन्तं कार्या, ज्ञेया एषा पञ्चमासचतुर्दशी, बृहती मासं मासं प्रति चतुर्दशी शुक्ला सा मासचतुर्दशी तां पर्यन्त कार्याः पञ्चोपवासाः । व्यतिरेकेण शोलचतुर्दशीरूप्य चतुर्दशीमारभ्य कार्तिक शुक्लचतुर्दशीपर्यन्तं दशोपवासाः कार्या भवन्ति ।
अर्थ : - पञ्चमास चतुर्दशी श्राषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक इन मासों की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को व्रत करना कहलाता है । इन व्रतों में प्रत्येक महीने में एक ही शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को उपवास करना पड़ता है। पांच ही उपवास किये जाते हैं । विशेष रूप से आषाढ़, श्रावरण, भाद्रपद, प्राश्विन और कार्तिक इन महिनों में दोनों ही चतुर्दशियों को उपवास करना, इस प्रकार उक्त पांच महीने में दश उपवास करना तथा रूपचतुर्दशी और शीलचतुर्दशी के उपवासों को भी शामिल करना पञ्च चतुर्दशी व्रत है । प्राषाढ़ मास की अष्टान्हिका की चतुर्दशी को रूपचतुर्दशी कहते हैं । पञ्चमास चतुर्दशी का प्रारम्भ शीलचतुर्दशी से किया जाता है ।
विवेचन :- मासिक व्रत उन व्रतों को कहा जाता है, जो वर्ष में कई महीने अथवा एक-दो महीने तक किये जायें । मासिक व्रत प्रायः महीने में एक बार हो किये जाते हैं । कुछ व्रत ऐसे भी हैं जिनके उपवास एक महीने की कई तिथियों में करने