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व्रत कथा कोष
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और सरल कुमार दोनों ने संसार शरीर और भोगों से विरक्त होकर श्रीवर्धन मुनिश्वर के पास जाकर जिनदीक्षा ग्रहण करली, उसके साथ पूर्णभद्र राजा ने भी विरक्त होकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली और तीनों ही मुनिराज बारह प्रकार का तप और छह प्रावश्यक क्रिया, तीन गुप्ति दर्शनादि पञ्चाचार व पांच समिति इत्यादि गुणों का पालन करने में तत्पर हो गये ।
घोर तपस्या करने से तीनों ही महामुनि अनेक ऋद्धि संपन्न हो गये, और देश देशान्तरों में विहार करने लगे। पूरमताल पर्वत के ऊपर कायोत्सर्ग मुद्रा में रह कर धर्मध्यान से मरण कर अच्युत स्वर्ग में देव होकर जन्म ग्रहण किया। आगे प्रच्युत स्वर्ग को प्रायुष्य को सुखपूर्वक भोगकर मरे और एक भवातारी होकर जन्में । मनुष्यभव पाकर जिनदीक्षा ग्रहण करके घोर तपस्या करने लगे, कर्मों को काट कर शाश्वत सुखरूप मोक्ष को प्राप्त किया।
श्रत पञ्चमी व्रत विधान और विधान की कथा गौतम स्वामी के मुख से सुनकर श्रेणीकादि को बहत आनन्द झा, तब उस चेलना देवी ने गौतम स्वामी को नमस्कार करके श्रुत पञ्चमी व्रत को स्वोकार किया, उसके बाद भगवान महावीर को और गौतम स्वामी को नमस्कार करके राजा श्रेणिक प्रजाजनों के साथ राजग्रही नगरी में वापस लौट गया।
__ आगे कालानुसार रानी चेलना ने व्रत को विधिनुसार पालन कर उद्यापन किया, फिर कुछ ही समय बाद आर्यिका दीक्षा लेकर उत्तम तपश्चरण कर स्त्रीलिंग का छेदनकर स्वर्ग में महान ऋद्धिधारी देव हुई । वहां वो बहुत हो देवों के सुख भोग रही है. इसलिए हे भव्यो ! पाप भो इस व्रत का अच्छी तरह पालन करो, जिससे स्वर्ग सुख की प्राप्ति करते हुए क्रम से मोक्ष सुख की प्राप्ति करो।
... श्रुतपंचमी व्रत कथा ज्येष्ठ सुदी पञ्चमी श्रुत–पञ्चमी है, इस दिन श्री भूतबली व पुष्पदंत मुनी ने धवल जयधवल और महाधवल इन मूल ग्रन्थों की षटखण्डागम पुस्तक की रचना की । उस दिन पूर्ण होने से उसकी पूजा की (देखी श्रुतस्कंध विधान) इसलिए प्रत्येक वर्ष प्रोषध उपवास करना चाहिए । १७ वर्ष यह तक व्रत करना चाहिए । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए ।