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व्रत कथा कोष
इसको दूसरी विधि :-ज्येष्ठ वदि पंचमी को उपवास करना, यह व्रत ५ वर्ष तक करना, उसको स्कंध श्रुत पंचमी भी कहते है।
इस दिन जिनवाणी की पूजा करना, ग्रन्थ की रथ यात्रा निकालना, इसकी कथा पढ़ना । प्रत्येक श्रावक को अपने घर में रखे शास्त्र ठीक करना व उसकी पूजा करनी चाहिए, श्रुत पट ग्रन्थ पर श्री इन्द्रनंदी प्राचार्य ने लिखा है उसमें जिनधर्म का प्रचार कैसे हुआ उसका वर्णन है व उसको उन्नति किसने की ग्रन्थ किसने किया व ग्रंथ की रचना कैसे हुई इसका इतिहास दिया है । वह पढ़ना चाहिए ।
कथा धरसेन भूतबलि पुष्पदंताचार्य को कथा पढ़े ।
पञ्चमन्दर व्रत कथा आषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन महिने में आने वाले नंदीश्वर पर्व में सप्तमी को एकाशन करे, अष्टमी को शुद्ध होकर मन्दिर में जावे, तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, मण्डप शृगार करके पंच मन्दर की रचना करे, नन्दीश्वर प्रतिमा व अन्य कोई भी प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे, पंचमेरु की अष्ट द्रव्य से अलग-अलग पूजा करे।
ॐ ह्रीं पंचमेरु स्थित समस्त जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे उस दिन उपवास, एकाशन, वस्तु परिसंख्यान यथाशक्ति करे, सत्पात्रों को दान देवे, इस प्रकार प्रतिदिन पौरिणमा पर्यन्त करे, इस प्रकार पांच अष्टान्हिका के अन्दर पूजा करने पर अन्त में उद्यापन करे, पंचमेरु विधान खूब ठाठ से करे, इसके मन्त्र आगे लिखे अनुसार हैं।
१ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुपूर्वभद्रसालवनजिनचैत्यालयस्थजिनबिबा अत्र आगच्छत २ संवौषट् अाह्वाननं । ॐ अत्र तिष्ठत २ ठ ठ स्थापनं । ॐ अत्र मम सन्निहिता भव २ वषट् सन्निधीकरणं ॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुपूर्वभद्रसालवनजिन चैत्यालयस्थजिनबिबेभ्यो जलं निर्वपामि स्वाहा ॥ एवं गंधादिष्वपि योज्यं ॥ २ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुपूर्वनंदनवन