________________
व्रत कथा कोष
[ ३३९
जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं प्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुजिनधर्म जिनश्रागम जिन चैत्य चैत्यालये नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे । णमोकार मंत्र का भी १०८ बार जाप करे । सहस्र नाम का पाठ करे, स्वाध्याय करे । फिर एक पात्र में महार्घ्य तैयार करे । आरती करते हुये मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा दे । उस दिन उपवास करे या कुछ वस्तुत्रों का नियम लेकर एकाशन करे । चतुविध संघ को प्राहारदान प्रादिदे । १२ व्रतों का पालन करे ।
इस प्रकार पूर्णिमा तक आठ दिन व्रत करके पौ. कृ. १ के दिन इस व्रत का उद्यापन करे । उस दिन नवदेवता विधान करके महाभिषेक करे । चतुर्विध संघ को आहार आदि दे ।
कथा
विजयार्ध पर्वत के दक्षिरण श्र ेणी पर धान्यमलाट नामक एक विस्तीर्ण देश है । वहां शोभावती नामक नगरी है । वहां पर प्रजापाल नामक राजा राज्य करता था । उसकी श्रीदेवी नामक सौन्दर्यवति रानी थी ।
एक दिन उस नगर के उद्यान में श्रीधर प्राचार्य अपने संघ सहित पधारे । राजा उनके दर्शन के लिये गये वन्दना कर राजा ने धर्मोपदेश सुना और महाराज जी से दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना की हे मुनिश्वर ! हमें कोई एक व्रत कहो । तब महाराज जी ने यह व्रत करने को कहा और सब विधि बतायी । राजा दर्शन कर नगर में आये और उचित समय में राजा ने यह व्रत विधिपूर्वक किया । इसके परिणामस्वरूप राजा अनुक्रम से मोक्ष गये ।
अथ निशः शल्याष्टमी व्रत कथा
व्रत विधि :- भाद्रपद कृष्णा के दिन शुद्ध कपड़े पहनकर मन्दिर में जाये। वहां चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा विराजमान करके अभिषेक करे । प्रष्ट द्रव्य से उनकी पूजा अर्चना कर जयमाला पढ़े ।