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व्रत कथा कोष
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ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः असि प्राउसा नमः सर्वशांतिर्भवतु स्वाहाः ।
इस मन्त्र से अथवा ॐ नमः पञ्चपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा । इस मन्त्र से उनको एक २ अर्घ्य चढ़ावे, अन्त में १०८ पुष्प से जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, णमोकार मन्त्रों का १०८ बार जाप्य करे, उसके बाद एक महा अर्घ करे, अर्घ हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उपवासादि शक्ति प्रमाण करे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे ।
इसी प्रकार प्रत्येक महीने की शुद्ध शुक्ल पञ्चमी को पूजा करना चाहिये, व प्रत्येक दिन पञ्च परमेष्ठि भगवान का दूध का अभिषेक करे, अन्त में व्रत का उद्यापन करे, उस समय श्रुत स्कंध यन्त्र की यथाविधि प्रतिष्ठा करके पांच प्रकार की मिठाई बनाकर पूजा करे, चतुर्विध संघ को आहारादि दान देवे, इस प्रकार इस व्रत की विधि है ।
कथा
___ इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मगध नाम का विशाल देश है, उस देश में सौन्दर नाम का एक गांव है, वहाँ पहले विश्वसेन नाम का राजा राज्य करता था, उसको सौंधरो नाम की सुन्दर पट्टराणी थी, दोनों सुख से राजसुख भोग रहे थे । एक दिन भगवान महावीर का समवसरण विपुलाचल पर्वत पर आया है ऐसा वनपालक के द्वारा सूचना प्राप्त होते ही, नगरवासी लोगों के साथ स्वयं के परिवार को लेकर विपुलाचल पर्वत पर चला गया, जाकर साक्षात भगवान को नमस्कार करके मनुष्यों के कोठे में बैठ गया, दिव्यध्वनि सुनने लगा, कुछ समय बाद हाथ जोड़ कर विनयपूर्वक गौतम स्वामी से प्रार्थना करने लगा कि हे जगत्गुरो ! आप कोई ऐसा व्रत कहिये कि जिसके फल से अनन्त सुख की प्राप्ति मुझे हो, तब गौतम स्वामी कहने लगे कि हे भव्योत्तम राजन ! तुम पञ्चालंकार व्रत को करो, जिसके फल से तुम को शीघ्र ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। ऐपा कहकर भगवान ने पूर्ण रूप से व्रत की विधि कही ।
तब भक्ति से सब लोगों ने व्रत ग्रहण किया और अपने नगर में वापस मा गये, राजा ने विधिपूर्वक व्रत का पालन किया और उद्यापन भी किया। अन्त में