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व्रत कथा कोष
कथा
इस व्रत में भी रानी चेलना की कथा पढ़े । इस व्रत को नंदीषेण राजा ने पालन किया था ।
नंदावति व्रत कथा आषाढ़ शुक्ल अष्टमी को शुद्ध होकर मन्दिर में जावे, प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार करे, संभवनाथ भगवान की प्रतिमा यक्षयक्षि सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, देव के आगे एक पाटे पर तीन पान लगाकर ऊपर अष्ट द्रव्य रखे, फिर भगवान की पूजा करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की अर्चना करे।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं संभवनाथ तीर्थ कराय त्रिमुखयक्ष प्रज्ञप्तियक्षि सहिताय नमः स्वाहा।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ जाप्य करे, पूर्ण अर्घ चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, शक्ति अनुसार उपवास या पारणा करे अथवा तीन वस्तुओं से एकाशन करे, ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान से रहे । दूसरे दिन पूजा, दान करके स्वयं पारणा करे।
इस प्रकार नौ अष्टमी नौ चतुर्दशि को व्रत करके पूजा करे, कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन करे, उस समय संभवनाथ विधान करे, महाभिषेक करे, तीन मुनि संघों को आहारादि देवे और चतुर्विध संघ को उपकरण दान देवे ।
कथा नंदीपुर नामक नगर में नंदीवर्धन राजा अपनी नंदावती रानी के साथ राज्य करता था । एक बार नंदिघोष नामक मुनिराज का उपदेश सुनकर राजा ने व रानी ने कहा कि गुरुदेव मुझे कोई संतान नहीं, सो होगी क नहीं ? मुनिराज ने कहा कि तुम नंदावती व्रत करो, उसके प्रभाव से तुमको एक चरम-शरीरी पुत्र उत्पन्न होगा।