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व्रत कथा कोष
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रानी ने प्रसन्नता से व्रत को ग्रहण किया, और व्रत को अच्छी तरह से पालन किया, उसके प्रभाव से उसको एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ, बड़ा होकर वे सब दीक्षा लेकर मोक्ष को गये
।
अथ नवनारद व्रत कथा
व्रत विधि :- - आश्विन शुक्ला १ के दिन यथाशक्ति उपवास करके धर्म ध्यानपूर्वक दिन निकाले । बिधि - पहले के समान मन्दिर में जाये । पंचामृत अभिषेक करे । महार्घ्य दे ।
जाप :- "ॐ ह्रीं श्रहं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्पों से जाप करे। जिन सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करे और यह कथा पढ़ े । णमोकार मन्त्र का जाप करे । ब्रह्मचर्य का पालन करे । दूसरी सब विधि पहले के समान करे ।
इस क्रम से 8 दिन पूजा करके १० वें दिन जिनपूजा करके विसर्जन करे । ६ वर्ष या महीने व्रत करके उद्यापन करे । उस समय नवदेवता विधान करे । महाभिषेक करे । चतुविध संघ को आहार दान दे । ६ दम्पतियों को भोजन करा करके उनकी ओटी भरे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप में पश्चिम विदेह क्षेत्र में सीतोदा नामक नदी है उस नदी के दायें प्रदेश में विभंगा नामक नदी है । उसके मध्य भाग में विजयाद्ध नामक पर्वत है । उस पर्वत के उत्तर श्रेणी पर अलका नामक एक मनोहर नगरी है ।
वहां पहले प्रतिबल नामक एक महापराक्रमी रूपवान धर्मिष्ठ राजा रहता था । उसकी मनोहरी नामक स्त्री थी । उसको महाबल नामक एक लड़का था उसको गुणवती नामक एक सुन्दर स्त्री थी । उस राजा के स्वयंबुद्ध महामति शतमति भिन्नमति ऐसे चार महामंत्री थे ।
एक दिन उस प्रतिबल राजा को किसी निमित्त से क्षरणभंगुर संसार से