________________
३६२ ]
व्रत कथा कोष
निरतिशय व्रत कथा
आषाढ़, कार्तिक व फाल्गुन, इन तीनों महीने की अष्टमी को इस व्रत का पालन करना चाहिए प्रातः शुद्ध वस्त्र पहन कर मन्दिर जी में जावे, वहां मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, ईर्यायथ शुद्धिपूर्वक भगवान को नमस्कार करे, सिंहासन पीठ ( अभिषेकपीठ ) पर चौबीस तीर्थंकर की मूर्ति स्थापन करके पंचामृताभिषेक करे, प्रत्येक तीर्थंकर को अलग-अलग अर्घ चढ़ाकर जयमालापूर्वक पूजा करे, चौबीस तीर्थंकरों की अलग-अलग स्तोत्रपूर्वक पूजा करे, जिनवाणी की पूजा करे, गुरु की पूजा करे, यक्षपक्षियों को, क्षेत्रपाल को अर्घादिक देकर सम्मान करे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं वृषभादि वर्धमानांत वर्तमान चतुर्विंशति तीर्थकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप करे णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, तीर्थंकरों का चरित्र वाचन कर व्रत कथा भी पढ़, एक थाली में दो पान पर दो दो अक्षत पुञ्ज रखे, ऊपर सुपारी रखे, गन्ध, पुष्प, नैवेद्य, फलादि रखकर दीपक रखे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा देकर अर्घ चढ़ावे, भारती करे, पूजाविसर्जन करे उस दिन शक्ति अनुसार उपवास करके सत्पात्र को आहारदान देवे । यह विधि पहले दिन की है, इस दिन से लगाकर प्रतिदिन चौबीस तीर्थ कर प्रतिमा का अभिषेक करके सामुदायिक प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे, एक पुष्पमाला भगवान के चरणों में अर्पण कर, उपरोक्त मन्त्र को १०८ बार पुष्पों से जाप्य करे, रोज घी का अखण्ड दीपक जलावे, महार्घ ( जयमाला) करके विसर्सन करे ।
प्रत्येक महिने की पूर्णिमा व अष्टमी को पूर्व विधि के समान ही विधि करे, उसी प्रकार पूजा करे, इसी क्रम से चार महिने पूजा करना चाहिये, अन्त में चतुविंशति तीर्थंकर आराधना करके उद्यापन करे, शक्ति हो तो नवीन चौबोस तीर्थ कर प्रतिमा बनवाकर पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा करे, चार प्रकार की मिठाई तैयार कराकर नैवेद्य अर्पण करे, चारप्रकार की धान्यराशि करे, चार प्रकार के फल चढ़ावे, चार वायने ( सूप में सामान रखने को वायना कहते हैं) तैयार करे, चतुविध संघ को प्राहारादि देवे, बाद में पारणा करे, इस प्रकार व्रत की विधि है ।