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व्रत कथा कोष
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एक दिन नगरी के उद्यान में ३७०० मुनिसंघ सहित यशस्तिलक नाम के महामुनि आये, इस शुभवार्ता को राजा ने सुना, शीघ्र ही मुनिसंघ के दर्शन के लिए पुरजन परिजन को लेकर चला, वहां जाकर संघ को तीन प्रदक्षिणा पूर्वक नमस्कार किया, धर्मोपदेश सुनने के लिये सभा में बैठ गया, कुछ समय धर्मोपदेश सुनकर चंद्रलेखा रानी कहने लगी कि हे गुरुदेव ! संघ नायक प्राचार्य भगवान आज मुझे बहुत आनन्द हो रहा है, मेरे लायक मेरा संसार दुःख दूर हो उसके लिये कोई व्रत प्रदान करिये, तब मुनिराज कहने लगे कि हे पुत्री तुम नित्यसुखदा अष्टमी व्रत करो, जिससे शीघ्र संसार से पार हो जाओगी. ऐसा कहकर मुनिराज ने यथाविधि व्रत का स्वरूप वर्णन किया, और कहने लगे कि हे पुत्री सुनो इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एक विशाल देश है, उस देश में नित्यवसंत नाम का नगर है, उस नगर में सत्यसागर राजा अपनी पट्टरानी चितोत्सवा सहित राज्य करता था, उस नगर में नित्य रोग नामका एक गृहस्थ रहता था, उसकी नित्यदुःखी नाम की स्त्री रहती थी, इस ग्रहस्थ को माणिक, वदन, विजय, मनोहर ऐसे चार पुत्र थे । ये सब दरिद्र अवस्था में समय निकाल रहे थे, एक बार भूतानंद नामक महामुनिश्वर आहार के लिये नगर में आये, तब नित्यरोग नामक ग्रहस्थ के यहां मुनिराज का आहार हुआ, मुनिराज का निरंतराय प्रहार होने पर मुनिराज को अपने घर के प्रांगन में बिठाकर नित्यदुःखी श्राविका कहने लगी कि हे मुनिराज प्राप मुझे मेरे घर की दरिद्रता नष्ट हो ऐसा कोई उपाय अवश्य बताइये । उसके नम्र वचन सुनकर मुनिराज कहने लगे कि हे पुत्री तुम नित्य सुखदा अष्टमी व्रत पालन करो, इस प्रकार कहकर सर्वविधि कह सुनाई, उसने सुनकर भक्ति से व्रत को ग्रहण किया, मुनिराज वहां से वापस वन को चले गये, उस ग्रहस्थ ने यथाविधि व्रत का पालन किया, अंत में व्रत का उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से सुखदा अवस्था प्राप्त हुई । यह सुनकर सबको बहुत आनन्द हुआ, यह व्रत कथा सुनकर चंद्रलेखा रानी ने इस व्रत को ग्रहण किया और सब लोग नगरी में वापस आ गये ।
एक दिन चंद्रलेखा रानी ने सामुद्रिक से सुना कि मेरी आयु मात्र सात दिन