________________
३५४ ]
व्रत कथा कोष
श्रीकीर्ति पुरोहित व उनकी स्त्री श्रीसुन्दरी, विजय सेनापति व उनकी ग्रहिणी श्री रमादेवी, श्रीदत्त श्रेष्ठी व उनकी स्त्री श्रीदत्ता ऐसे परिवारजन थे । उनके साथ एक बार राजा अपने उद्यान में सुधर्माचार्य नामक महामुनीश्वर के दर्शनों के लिए गये थे । उस समय यह व्रत उन्होंने लिया था । जिससे उनको सर्वसुखों का पूर्ण अनुभव हुआ और जिनदीक्षा धारण की। बाद में समाधिविधि से मरण करके स्वर्ग तथा परम्परा से मोक्ष गये । ऐसी इनकी विधि है ।
अथ नित्यसुखदाष्टमी व्रत कथा
आषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन की किसी भी अष्टान्हिका पर्व की अष्टमी के दिन व्रतिक स्नानकर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा सामग्री लेकर मन्दिर में जावे, ईर्यापथ शुद्धि कर भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पंचपरमेष्ठि भगवान की मूर्ति स्थापन कर भगवान का पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से भगवान की पूजा करे, श्रुत व गुरु की उपासना करे, पूजा करे, यक्षय क्षिरिण व क्षेत्रपाल की पूजा करे, खीर का नैवेद्य बनाकर चढ़ावे ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः श्रसि श्रा उ सा स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्रों का १०८ बार जाय करे, व्रत कथा पढ़े, एक महार्घ्य थाली में लेकर मन्दिर की ३ प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य भगवान को चढ़ा देवे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, उपवास करे, दूसरे दिन सत्पात्रों को प्राहारदान देकर पारणा करे, यह पहली पूजा हुई । इसी प्रकार दूसरी अष्टमी को पूजा कर, सेवयां की खीर बनाकर चढ़ावे, तीसरी अष्टमी को हवा करके चढ़ावे, चौथी प्रष्टमी को चांवल की खीर करके चढ़ावे, पांचवीं
ष्टमी को उद्यापन करे, उस समय पंचपरमेष्ठि भगवान का पंचामृत अभिषेक करके पूजा करना, पांच जगह २५ चरू (नैवेद्य ) करके चढ़ावे, सत्पात्रों को दान देवे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आर्यखंड है, प्रर्यखंड में चन्द्रवर्धन देश है उसमें चन्द्रपुर नामका नगर है, उस नगर में चन्द्रशेखर राजा अपनी रानी चन्द्रलेखा सहित सुख से राज्य करता था ।