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व्रत कथा कोष
( ५ ) ॐ ह्रीं गुरुमहाग्रहसहित वर्धमान जिनदेवाय जलं । (६) ॐ ह्रीं शुक्र महाग्रहसहित पुष्पदंत जिनदेवाय जलं । ( ७ ) ॐ ह्रीं शनिमहाग्रहसहित मुनिसुव्रत जिनदेवाय जलं । ( ८ ) ॐ ह्रीं राहूमहाग्रहसहित नेमि जिनदेवाय जलं । ( 2 ) ॐ ह्रीं केतुमहाग्रहसहित पार्श्व जिनदेवाय जलं ।
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श्रुत व गणधर पूजा करके यक्ष यक्षी व ब्रह्मदेव इनकी अर्चा करे ।
फिर ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः श्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प चढ़ावे फिर ऊपर लिखे नवग्रह के मन्त्र से प्रत्येक के १०८ पुष्प क्रम से 8 दिन तक करे । अन्त में णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे । यह व्रत कथा पढ़ना । एक पात्र में ६ पान रखकर उस पर अष्टद्रव्य तथा एक नारियल रखकर महार्घ्य करे । मंगल आरती करना । सत्पात्रों को आहारदान दे । ६ दिन एकाशन करे । ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान से समय बितावे |
इस प्रकार दिन पूजा करके उसका उद्यापन करे । उस दिन ( कृष्ण १ के दिन) नवग्रह विधान करके महाभिषेक कराये, शांतिहोम करना । चतुर्विध संघ को दान दे। मुनियों को आहार देकर आवश्यक वस्तु देना । वैसे ही प्रायिकाओं को आहार दे । दम्पतियों को भोजन करवाकर वस्त्रादिक देकर सम्मान करे ।
कथा
इस पुष्करार्धं द्वीप में पूर्वमंदर पर्वत के पूर्व भाग में विदेह क्षेत्र में मंगलावती नामक देश है । उसमें रत्नसंचय नामक एक मनोहर देश है । वहां पहले धरसेन नामक एक महापराक्रमी, सद्गुणी, सुशील, नीतिमान् ऐसा राजा सुख से राज्योपभोग करता था । उसकी मनोहरी नाम की पट्टरानी थी । उसके । विभीषेण व श्रीवर्म ऐसे दो पुत्र थे जो कि बलदेव व वासुदेव पदवी के धारक थे । उनकी श्रीमती व भूषणी नामक स्त्रियां थी । वैसे ही श्रीकांत मन्त्री व उनकी स्त्रो श्रीमाला