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व्रत कथा कोष
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उस दुर्मुखे से घृणा करते थे इसलिये वह बहुत दुखी रहा करता था। एक दिन प्रधान नामक महामुनि आहार के निमित्त उस नगर में आये, मुर्तिराज को देखकर उस दुख कम में ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि जब ये मुनिश्वरप्रहार करके वापस जंगल की जायेंगे, तब मैं भी इनके पीछे जंगल को जाऊंगा "मुनिराज का श्रीहार हो जाने के 'बाद' व 'जंगल' को 'चले ती दुर्मुख भी मुनिश्वर के पीछे चला गया, महा एक स्फटिक शिला के ऊपर ध्यानस्थ बैठ गये, वो दुर्मुख भी उनके निकट जाकर वेद गया, मुनिराज का ध्यान समाप्त हो जाने के बाद निकट बैठे हुये व्यक्ति को देखा, अवधिज्ञान से उसके भवान्तर सब जान लिये मुनिराज उस द्रुमख को कहने लगे कि है दुखिया तुम पहले नरक के दुःख भोगकर आये हो, अंब तुम मनुष्य भव में आयें हो और तुम्हारी श्रयु मात्र तीन दिन की रह गई है
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यह सुनकर वह दुर्मुख मुनिराज को भक्ति से नमस्कार करने लगा और कहने लगा कि स्वामिन ! मेरे दुःख का निवारण हो ऐसा कोई उपाय बताइये । तब मुनिराज कहने लगे कि हे भव्य तुम शीघ्र जिनदीक्षा धारण करों, ऐसा सुनकर उसने दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली और तोकादिना कलप में देव लेकराला करके। विजयार्धपर्वत के बचपनी रानी विजय बढी सहित सुख से
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नाम से लोक करने को गय
संन्यास धारण कर मरा और ब्रह्मस्वाहों तक, मुख, भोकर आयु समाप्त नाम का पांव है वहां का राजा,.. करता था उसी राजा का वो अनत्वको बाम का पुत्र हुए सब दुलगा, एक, समय को मेरु पर्वत, सकृय को इस साल में उसकी अभय घोस मुनिराज से भेंट हुई कि उसने कहा कि हे स्वामिन आप मुझे कोई ऐसा व्रत प्रदान करें, अनन्त सुख का कारण बने । तब रूपमिक शिक मुनिराज कहने लगे कि हे भव्य ! तुम को नित्यानन्द व्रत का पालन करना चाहिए । 5 IS IFFI LE LIS उसे अनंतवीर्य ने भक्ति से व्रत को ग्रहण किया और नमस्कार करके "वापस नगर नए से उसकी प्राया । व्रत को यथाविधि पालन कर फिर उद्यापन किया । व्रत के प्रभाव श्रवधिज्ञान प्रकट हुम्रा, थोड़े दिन बाद जिनदीक्षा ग्रहण कर तपश्चर्या करने लगा और JEIE IPFI TIS TE JETSP RPF FR THE #BP VIR HIPS OF İST सर्वकर्मों का क्षय कर मोक्ष को गया ।
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