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व्रत कथा कोष
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इस व्रत का दस वर्ष तक पालन किया जाता है, पश्चात् उद्यापन कर दिया जाता है । इस व्रत की उत्कृष्ट विधि तो यही है कि दस उपवास लगातार अर्थात् पञ्चमी से लेकर चतुर्दशी तक दस उपवास करने चाहिए । अथवा पञ्चमी और चतुर्दशी का उपवास तथा शेष दिनों में एकाशन करना चाहिए, परन्तु यह व्रत विधि शक्तिहीनों के लिए बतायी गयी है, यह परममार्ग नहीं है।
विवेचन :-दशलक्षण व्रत भादों, माघ और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में पञ्चमी से चतुर्दशी तक किया जाता है। परन्तु प्रचलित रूप में केवल भाद्रपदमास ही ग्रहण किया गया है । दशलक्षण व्रत के दस दिनों में त्रिकाल सामायिक, वन्दना और प्रतिक्रमण आदि क्रियाओं को सम्पन्न करना चाहिए । व्रतारम्भ के दिन से लेकर व्रत समाप्ति तक जिनेन्द्र भगवान् के अभिषेक के साथ दशलक्षण यन्त्र का भी अभिषेक किया जाता है । नित्य नैमित्तिक पूजाओं के अनन्तर दशलक्षण पूजा की जाती है । पञ्चमी, षष्ठी, सप्तमी आदि तिथियों में क्रम से प्रत्येक तिथि को
'ॐ ह्रीं अर्हन्मुख कमलसमुद्गताय उत्तमक्षमाधर्माङ्गाय नमः । 'ॐ ह्रीं प्रर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तमार्दवधर्माङ्गाय नमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तमार्जवधर्माङ्गाय नमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तमसत्यधर्माङ्गाय नमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तमशौचधर्माङ्गाय नमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तमसंयमधर्माङ्गाय नमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तम तपधर्माङ्गाय नमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तम त्यागधर्माङ्गायनमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तमाकिञ्चनधर्माङ्गायनमः । 'ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्गताय उत्तम ब्रह्मचर्यधर्माङ्गायनमः ।
मन्त्र का जाप करना चाहिए । समस्त दिन स्वाध्याय, पूजन, सामायिक आदि कार्यों में व्यतीत करे, रात्रि जागरण करे और समस्त विकथाओं का त्याग कर आत्मचिन्तन में लीन रहे । दसों दिन यथाशक्ति प्रोषध, बेला, तेला, एकाशन, ऊनोदर