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व्रत कथा कोष
व्यंतरी हो गई, सब विभंगावधि से जानकर वो तुमको अब कष्ट दे रही है, इसलिए तुम भी इस दुरितानिवारण व्रत को करो जिससे तुम्हारा सर्वसंकट टल जायेगा । तब मनोहरी ने अपने किये हुये पूर्व भव के पाप को नष्ट करने के लिए, दुरितनिवारण व्रत को स्वीकार किया और सब लोग नगर को वापस लौट आये ।
रानी और श्राविका मनोहरी ने यथाविधि व्रत का पालन किया, अन्त में उद्यापन किया जिसके प्रभाव से रानी मरकर स्वर्ग में देव हुई, और मनोहरी को सम्पत्ति सुख दोनों ही प्राप्त हुए, अन्त में वो भी समाधिमरण के बल से स्वर्ग में देव हुई । आगे नियम से दोनों ही देव मनुष्य भव धारणकर मोक्ष को जायेंगे । इस व्रत का यही प्रभाव है । भव्यजीवो ! तुम भी इस व्रत को पालो ।
दशलक्षण व्रत की विधि दशलक्षणिकबते भाद्रपदमासे शुक्ले श्री पञ्चमोदिने प्रोषध: कार्यः, सर्वगृहारम्भं परित्यज्य जिनालये गत्वा पूजार्चनादिकञ्च कार्यम् । चतुविंशतिकां प्रतिमा समारोप्य जिनास्पदे दशलक्षणिक यन्त्रं तदने घ्रियते, ततश्च स्नपनं कुर्यात्, भव्यः मोक्षाभिलाषी अष्टधापूजनद्रव्यैः जिनं पूजयेत् । पञ्चमीदिनमारभ्य चतुर्दशीपर्यन्तं व्रतं कार्यम, ब्रह्मचर्यविधिना स्थातव्यम् । इदं व्रतं दशवर्ष पर्यन्तं करणीयम्, ततश्चोद्यापनं कुर्यात् । अथवा दशोपवासाः कार्याः । अथवा पञ्चमोचतुर्दश्योरुपवासद्वयं शेषमेकाशनमिति कोषाञ्चिन्मतम्, तत्त शक्तिहीनतयाड.गीकृतं न तु परमो मागः ।
अर्थ- दशलक्षण व्रत भाद्रपद मास में शुक्लपक्ष की पञ्चमी से प्रारम्भ किया जाता है । पञ्चमी तिथि को प्रोषध करना चाहिए तथा समस्त गृहारम्भ का त्यागकर जिन-मन्दिर में जाकर पूजन, अर्चन, अभिषेक आदि धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए । अभिषेक के लिए चौबीस भगवान की प्रतिमानों को स्थापन कर उनके आगे दशलक्षण यन्त्र स्थापित करना चाहिए । पश्चात् अभिषेक क्रिया सम्पन्न करनी चाहिए । मोक्षाभिलाषी भव्य प्रष्ट द्रव्यों से भगवान् जिनेन्द्र का पूजन करता है । यह व्रत भादों सुदी पञ्चमी से भादों सुदी दशमी तक किया जाता है। दसों दिन ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है।