________________
२५०]
व्रत कथा कोष
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्पों से जाप्य करे, सहस्र नाम पढ़, श्रेयांसनाथ तीर्थंकर का चरित्र पढ़ े, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा का वाचन करे अथवा सुने, १६ पान पर अलग २ प्रष्टद्रव्य रखकर थाली में रखे, उस थाली को हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे ।
दक्षिणात विशेष विधि :- पांच सूप में गंध, अक्षत, पुष्प, फल, नारियल, नैवेद्य आदि रखकर, ऊपर से सूप ढांक देवे और सफेद सूत के धागे से लपेट कर, वह बंधा हुआ सूप १ देव के आगे, गुरु के आगे १, जिनवाणी के आगे एक यक्ष के आगे एक, यक्षिणी के आगे एक, एक सौभाग्यवती स्त्री को देवे, एक स्वयं लेवे, इसको वाना कहते हैं । वायना के अन्दर अच्छी २ चीज रखना चाहिये । दक्षिण प्रदेश में इस प्रकार की प्रथा है, जिस प्रकार की प्रथा जिस प्रदेश में हो वैसा करे। किसी भी प्रथा को गलत नहीं समझे, विधि की निंदा कभी नहीं करे ।
फिर घर जाकर सत्पात्रों को प्राहारादि देकर अपने एकभुक्ति करे । इस प्रकार यह व्रत सोलह वर्ष करना चाहिये । व्रत समाप्त होने के बाद उद्यापन करना चाहिये । उस समय श्रे योजिनेन्द्र विधान करके, चतुविध संघ को श्राहारादिक देवे, सोलह सौभाग्यवती स्त्रियों को भोजन कराकर उनको वस्त्रादि देकर सम्मान करे, इस रीति से व्रत का पूर्ण विधान है ।
नोट :- यह व्रत श्रेयांसनाथ तीर्थंकर की यक्षणी गौरीदेवी के नाम से है । उत्तर प्रदेश के व्रत कथाकोषों में इस व्रत का नाम भी नहीं मिलता है । दक्षिणात्य व्रत कथाकोषों में इस व्रत का विधान लिखा । मुझे तो समस्त व्रत कथा कोषका संकलन करना है इसलिये मैंने लिखा है, इच्छा हो तो व्रत करे नहीं तो नहीं । श्रापकी जैसी मान्यता |
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सिंहपुर नाम का एक प्रति मनोहर नगर है । उस नगर में पहले धर्मसेन नामका राजा राज्य करता था, उस राजा की नंदावती नाम की पट्टरानी थी, पट्टरानी को छोड़कर और भी अनेक स्त्रियां थीं, उस रानी के जयकुमार नाम का गुणवान पुत्र था, इन सबके साथ में राजा बहुत ही प्रानन्द से
राज्य करता था ।