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व्रत कथा कोष
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एक समय वह जयकुमार श्रेयांस तीर्थंकर के समवशरण में गया था। वहां भगवान का धर्मोपदेश सुनकर, गणधर स्वामी को हाथ जोड़ नमस्कार करता हुया कहने लगा कि हे भगवान ! गौरीव्रत को पहले किसने किया ? व्रत के फल से उसको क्या प्राप्त हुया ? इस विषय में मुझे कहो। उस कुमार के नम्र वचन सुन कर गणधर स्वामी कहने लगे कि इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में काम्भोज नामक एक विस्तीर्ण देश है । उस देश में उज्जयनी नामकी एक सुन्दर नगरी में श्रेयांस नाम का राजा राज्य करता था। उस राजा की श्रीमति रानी बहुत ही गुणवान और सुन्दर थी, रानी के साथ में राजा आनन्द से अपना समय व्यतीत कर रहा था, एक दिन उस नगर के उद्यान में कंडु नामादिक को धारण करने वाले बहुत ही साधुओं के साथ, श्रेयो मुनिश्वर आये । वनपाल से राजा को समाचार प्राप्त होते ही, राजा अपने परिवार सहित पैदल ही मुनिदर्शन को गया। मुनिश्वर को प्रदक्षिणा देकर नमस्कार किया और अष्ट द्रव्य से मुनिराज की पूजा की और मुनिराज का धर्मोपदेश सुनकर श्रीमती रानो कहने लगी कि हे, दयानिधान ! आप आज मुझे सकल सौभाग्यकारक कोई व्रतविधान बतायो । रानी के वचन सुनकर मुनिश्वर कहने लगे, हे बेटी ! तुमको इस समय गौरी व्रत करना चाहिये, इस व्रत का जो कोई पालन करता है उस भव्यजीव को इस लोक सम्बन्धी सर्वसुख प्राप्त होकर परमार्थ सुख की सिद्धि भी क्रमशः हो जाती है । ऐसा इस व्रत का माहात्म्य है, पहले इस व्रत को रुकमणी, श्रीमतो, पद्मावती, लक्ष्मोमती, शिवदेवी आदि स्त्रियों ने पालन कर सकल सौभाग्य को प्राप्त किया है, ऐसा कहते हुये उपरोक्त व्रत की विधि मुनिराज ने कह सुनाई। इस प्रकार व्रत की विधि को सुनकर श्रीमती आदि ने राजा के साथ में मुनिराज को नमस्कार करते हये व्रत को स्वीकार किया, और अपनी नगरी में वापस आगये । कालानुसार श्रीमती रानी ने व्रत को अच्छी तरह से पालन कर अंत में व्रत का उद्यापन किया। व्रत के पुण्योदय से उसको ऐहिक सर्वसुखों की प्राप्ति हुई। क्रमशः स्त्रीलिंग का छेदन करके शाश्वत सुख को प्राप्त किया।
- इसलिये हे भव्यजीवो! तुम भी इस व्रत को यथाविधि पालन करके उद्यापन करो, तुमको भी अखंड सौभाग्य सुख की प्राप्ति होगी।