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व्रत कथा कोष
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इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प चढ़ाये । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे तथा कथा पढ़ े । महार्घ्य करके आरती उतारे । उस दिन उपवास करे । श्राहारादि दान दे। दूसरे दिन पूजा करके पारणा करे । इस प्रकार पक्ष में एक दिन उसी तिथि को पूजा करना । ऐसे २४ पूजा पूर्ण होने पर उद्यापन करना उस समय २४ तीर्थं - कराधना करके महाभिषेक करना चतुःसंघ को चतुविध दान देना ।
कथा
जम्बूद्वी
मेरू पर्वत के पूर्वविदेह क्षेत्र में पुष्कलावती नाम का विशाल देश है। वहां पुंडरीकिरणी नगरी में प्रजापाल नाम के राजा राज्य करते थे जो पराक्रमी, धर्मवान् व नीतिवान थे । उनको कनकमाला नाम की पटरानी थी जिसके लोकपाल नाम के पुत्र और रत्नमाला धर्मपत्नी थी । कुबेरकांत श्रेष्ठी व उसकी कुबेरदत्ता स्त्री थी । मन्त्री, पुरोहित, सेना इनके साथ समय बीत रहा था ।
एक दिन महल में चारण मुनी चर्यानिमित्त आये । उनको पडगाह कर प्रासूक आहार दिया । पुनः थोड़ी देर उपदेश सुना । कुबेरदत्ता मुनिवर से विनय से बोली - हे स्वामिन ! मुझे उत्तम सुख को प्राप्ति हेतु व्रत बतायें । मुनि बोले - हे कन्या ! तू चतुर्विंशतिगणिनी व्रत का पालन कर, जिससे तुझे स्वर्ग ही नहीं मोक्ष सुख की प्राप्ति होगी । सुनकर उसने यह व्रत स्वीकार किया । यह देख सब ने यह व्रत ग्रहण किया तथा विधिपूर्वक पालन किया। जिसके फलस्वरूप उन्हें स्वर्ग सुख तथा क्रम से मोक्ष सुख की प्राप्ति हुई ।
चतुरशीति गरणधर व्रत कथा
व्रत विधि : - मार्गशीर्ष कृ. ६ के दिन एकाशन करे, १० के दिन शुद्ध कपड़ े पहन कर मन्दिर जाये, प्रष्ट द्रव्य भी ले जाय । पीठ पर ( पाटे पर ) चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा रखकर पंचामृत अभिषेक करे । २४ स्वस्तिक निकाल कर उस पर २४ पान रखकर उस पर प्रष्ट द्रव्य रखे । भ्रष्ट द्रव्य से पूजा अर्चना करे । जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं चतुर्विंशति तीर्थ करेभ्यो यक्षयक्षी सहितेभ्यो
नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे । णमोकार मन्त्र का भी जाप करे ।