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व्रत कथा कोष
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उपवास करना चाहते हैं, उनको भी इस व्रत के लिए कृष्णपक्ष में अष्टमी का और शुक्लपक्ष में चतुर्दशी का अथवा शुक्लपक्ष में अष्टमी का और कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी का उपवास करना चाहिए। लगातार एक ही पक्ष में दो उपवास करने का निषेध है । कोई भी व्यक्ति एक ही पक्ष की अष्टमी और चतुर्दशी को उपवास नहीं कर सकता है। उपवास के लिए जिस प्रकार पक्ष का पृथक् होना आवश्यक है, उसो प्रकार तिथि का भी । एक महिने में उपवास की तिथियां एक नहीं हो सकती । जैसे कोई व्यक्ति कृष्ण पञ्चमी का उपवास करे, तो पुनः शुक्लपक्ष में वह पञ्चमी का उपवास नहीं कर सकता है। कृष्णपक्ष में पञ्चमी के उपवास के पश्चात् शुक्लपक्ष में उसे तिथि परिर्वतन करना ही पड़ेगा । अतः शुक्लपक्ष में पञ्चमी को छोड़ किसी अन्य तिथि को उपवास कर सकता है । इस व्रत में प्रतिदिन 'ॐ ह्रीं चतुर्विशतितीर्थकरेभ्यो नमः' मन्त्र का १०८ बार जाप करना चाहिए ।
तूलसंक्रमण व्रत कथा उसी प्रकार इस व्रत को भी करे, आश्विन महिने के अंदर तूलसंक्रमण प्राता है तब इस व्रत को करे, सुपार्श्वनाथ की पूजा आराधना करे, मन्त्र जाप्य पूजा वगैरह पूर्ववत् करे, कथा भी वही पढ़ ।
तियंचगति निवारण व्रत कथा नरकगति निवारण व्रत विधि के समान यह व्रत भी समझना चाहिए उसी प्रकार इसे करे । बैशाख शुक्ल २ को एकाशन करे तृतीया को उपवास करे । चौबीस तीर्थंकरों की आराधना करें, पूजा करे, मन्त्र जाप्य भी उसी प्रकार करे। प्रत्येक महिने की उसी तिथि को व्रत पूजा करे। सात महिने पूरे होने पर कार्तिक में उद्यापन करे, शिखरजी विधान करके उद्यापन करे । कथा राजा श्रेणिक रानी चेलना की पढ़े।
मनुष्यगति निवारण व्रत कथा उपरोक्त विधि प्रमाण इस व्रत को करे । मात्र इस व्रत में अन्तर इतना ही है कि प्राषाढ़ शुक्ल तृतीया को एकासन, चतुर्थी को उपवास कर चौबोस तीर्थंकरों की माराधना, मन्त्र जाप्य भी उनका ही, कृष्णपक्ष व शुक्लपक्ष में उसी तिथि को