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व्रत कथा कोष
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अथ ददिक्पालक व्रत कथा व्रत विधि :-पौष के शुक्ल पक्ष में पहिले शनिवार को एकाशन करे और रविवार को उपवास करे । और सब विधि पहले के समान करे । दश दियालों की पृथक्-पृथक् अर्चा करे व नारियल चढ़ावे ।
___ जाप--ॐ ह्रां ह्रीं ह्र, ह्रौं ह्रः अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा ।।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प से जाप करे । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप कर यह कथा पढ़नी चाहिए। एक पात्र में १० पत्त (पान) रख करके अष्टद्रव्य व नारियल रखकर महार्घ्य चढ़ाये । उपवास की शक्ति न हो तो १० वस्तु का नियम कर पाहार करे । दूसरे दिन शक्ति के अनुसार सत्पात्र को आहार देकर पारणा करे । इस प्रकार १० रविवार करके उद्यापन करे। तीन दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे । पंचपरमेष्ठी का विधान अभिषेक करे । शांतिहोम व जलहोम करके १० दिक्पालों को नारियल चढ़ाये । चतुर्विध संघ को आहारदान दे । १० दम्पत्ति को भोजन कराये, वस्त्रादि दान दे और गोद भरे जिसमें पान, सुपारी, चावल, फल, पुष्प आदि रखे।
कथा
दशपुर नगर में दशचन्द्र नामक राजा राज्य करता था। उसकी विलासवती नामक सुशील रूपवती गुणवती ऐसी रानी थी। उसके दसिंह नामक गुणवान सुन्दर पुत्र था। जिसकी सिंहसेना नामक स्त्री थी । मन्त्री पुरोहित राजश्रेष्ठी सेनापति ऐसे परिवारजन थे । एक दिन उस राज्य के बगीचे में देशभूषण नाम के महामुनि पधारे । यह शुभ समाचार मिलते ही वह अपने परिवार के साथ उनके दर्शन के लिए पैदल गये । तीन प्रदक्षिणा देकर बैठे । धर्मोपदेश सुनकर वे विनय से हाथ जोड़कर बोले हे दयासिंधो ! स्वामिन् ! अब आप हमें सर्वसुखों के कारणभूत व्रत बतायें । यह सुनकर मुनिराज बोले-हे भव्योत्तम राजन् ! तुम दशदिक्पाल व्रत का पालन करो, जिससे तुम्हें सर्वसुख की प्राप्ति होगी। ऐसा कहकर व्रत को विधि बताई जिसे सुनकर सबको परम सन्तोष हुआ और राजा ने वह व्रत ग्रहण