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व्रत कथा कोष
पर वह इसकी चिन्ता किये बिना ही ऊपर गयी और अभिषेक किया । जैसे ही उसने गुललकाईत (छोटा कलश) से अभिषेक किया वैसे ही गन्धोदक नदी के समान नीचे बहने लगा । यह देखकर सब लोग आश्चर्य से देखने लगे तब राजा के अन्तःकरण से अहंकार एकदम (झ ) से निकल गया और वह वृद्धा भी लुप्त हो गयो । तब सबके मन में आया कि यह इसी देवी का कारण है अतः लोगों ने उसी बाहुबली के सामने उस गुललका की स्थापना की और उसकी पूजा की । राजा सुखपूर्वक अपने नगर वापस गया ।
एक दिन उस नगर में चर्यानिमित्त पद्मानंदी नामक प्राचार्य महाराज पधारे । वे उसी राजमार्ग में से निकले तो राजा ने नवधाभक्तिपूर्वक पड़गाहन किया श्रौर पूजा आदि करके उन्हें निरन्तराय प्रहार कराया ।
महाराज प्रहार करके बैठे तब राजा ने कहा महाराज श्रवणबेलगुल में पहाड़ पर बाहुबली की उस मूर्ति का किसने निर्माण कराया था । यह सुन निमित्तज्ञान के आधार से महाराज ने कहा मैं उसे बताता हूं, सुनो ।
इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है उसमें प्रार्यखंड है, उसमें प्रयोध्या नगरी में दशरथ नामक राजा था । उसके चार रानियां थीं । उसमें अपराजित नामक पट्टरानी थी, उसके गर्भ से रामचन्द्रजी, सुमित्रा से लक्ष्मण, सुप्रभा से शत्रुघ्न और कैकेयी से भरत इस प्रकार चार पुत्र उत्पन्न हुये । रामचन्द्र की स्त्री सीता, लक्ष्मण की कनकादेवी, शत्रुघ्न की सुन्दरादेवी और भरत की कमलादेवी इस प्रकार चारों की चार स्त्रियां थीं ।
एक बार दशरथ युद्ध करने गये थे वहां पर उनके रथ से कोली निकल गयी थी तब कैकेयी ने अपने हाथ की अंगुली डालकर रथ को आगे बढ़ाया था उसे मुसी - बत से निकाला था । उस समय उसे वरदान दिया । जब दशरथ राम को राज्य दे रहे थे तब कैकयी ने वह वरदान मांगा। जिससे भरत को राज्य दिया । रामचन्द्र अपना दूसरा राज्य बसाने के लिये जंगल में चले गये । वे तीनों जंगल में तीर्थयात्रा करते-करते दक्षिण भाग में प्राये । वे श्रवणबेलगुल प्राये । वहाँ पर उन्होंने एक अतिशय ऊंची अखंड शिलालय व सुन्दर पर्वत देखा । अनेक कलाओं में कुशल राम