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व्रत कथा कोष
क्षयध्यानपंक्तिचारित्रशुद्धिगुणपंक्तिप्रमादपरिहारसंयमपंक्ति प्रतिष्ठाकारण महोत्सावदिकानि व्रतानि उत्तमार्थानि ज्ञ यानि । एतेषां विशेषस्तु पार्षग्रन्थेभ्यो ज्ञयः ।
अर्थ :- रत्नत्रय, षोडशकारण, अष्टान्हिका, दशलक्षण, पञ्चकल्याणक, महापञ्चकल्याणक, सिंहनिष्क्रीड़ीत, श्र तज्ञानसूत्र, जिनेन्द्रमाहात्म्य, त्रिलोकसार घातिक्षय, ध्यानपंक्ति, चारित्रशुद्धि, गुणपक्ति, प्रमादपरिहार सयमपक्ति, प्रतिष्ठाकारण महोत्सव और संन्यासमहोत्सव आदि व्रत उत्तमार्थसंज्ञक होते हैं। इनका विशेष वर्णन पार्षग्रन्थों से अवगत करना चाहिए।
विवेचन :-श्र तज्ञान व्रत में सोलह प्रतिपदानों के सोलह उपवास, तीन ततोयानों के तीन उपवास, चार चतुर्थियों के चार उपवास, पांच पंचमियों के पांच उपवास, छः षष्ठियों के छः उपवास, सात सप्तमियों के सात उपवास, आठ अष्टमियों के पाठ उपवास, नव नौमियों के नौ उपवास, बीस दशमियों के बीस उपवास, ग्यारह एकादशियों के ग्यारह उपवास, बारह द्वादशियों के बारह उपवास, तेरह त्रयोदशियों के तेरह उपवास, चौदह चतुर्दशियों के चौदह उपवास, पन्द्रह पूर्णमासियों के पन्द्रह उपवास एवं पन्द्रह अमावस्याओं के पन्द्रह उपवास किये जाते हैं।
पंचकल्याणक व्रत में जब-जब चौबीस तीर्थंकरों के पंचकल्याणक हों, उनउन तिथियों को उपवास करने चाहिए ।
अथ कंदर्पसागर व्रत कथा मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी के दिन प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा सामग्री हाथ में लेकर जिनमन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करके, भगवान को नमस्कार करे।
पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा धरणेन्द्र पद्मावति सहित स्थापित कर एक कलश में, दूध, घी, शक्कर का मिश्रण कर प्रथम उसका अभिषक करे, उसके बाद पंचामताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं श्रीपार्श्वनाथ तीर्थंकराय धरणेन्द्र पद्मावति सहिताय नमः स्वाहा।