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व्रत कथा कोष
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करने लगे कि हे देव ! हमको इस मनुष्य पर्याय में दरिद्रता का दुःख क्यों भोगना पड़ रहा है दुःख-निवारण के लिए उपाय बतायो। तब मुनिराज ने उनको कहा हे भव्यजीवो! तुम सुखी होने के लिए केवल सुखदा अष्टमी व्रत का पालन करो। ऐसा कहकर व्रत की सर्व विधि कह सुनाई । तब उन दोनों ने आनन्दित होकर व्रत ग्रहण किया और नगर में वापस लौट आये।
कुछ समय व्रत का पालन कर उद्यापन किया । व्रत के प्रभाव से धनधान्य से खुब सम्पन्न हुए । कुछ काल सुख भोगकर अन्त में दीक्षा धारण कर समाधिमरण को प्राप्त किया और स्वर्ग में देव हुए । वहाँ से चल कर तुम धनपाल व बन्धुश्रो होकर जनमे हो । ऐसा सुनकर उन दोनों ने पुनः व्रत ग्रहण किया, यथाविधि व्रत को पालन कर समाधिपूर्वक मरे और अच्युत स्वर्ग में देव हुए । क्रम से मोक्ष गये ।
कुजपंचमी व्रत कथा चैत्रादि बारह महिने में कोई भी एक महिने की मंगलवार पंचमी के दिन व्रतीक स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर जिनमन्दिर में जावे, ईर्यापथ शुद्धिपूर्वक भगवान को नमस्कार करे, नंदादीप लगावे, सुपार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति यक्षयक्षि सहित स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे, एक पाटे पर चंदन से सात स्वस्तिक बनाकर ऊपर सात पान रखे, उनके ऊपर क्रमशः अष्टद्रव्य रखे, फिर प्रत्येक तीर्थंकर की जयमाला सहित, आदिनाथ से सुपार्श्वनाथ तक पूजा करे, पंच पकबान चढ़ावे, श्रत, गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि की व क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे।
___ ॐ ह्रीं अहं श्री सुपार्श्वनाथ यक्षयक्षि सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, सहस्रनाम पढ़े, व्रत कथा पढ़े, सुपार्श्वनाथ चरित्र पढ़े । एक थाली में नारियल सहित महाअर्घ्य रखकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, महाअर्घ्य को चढ़ा देवे, उस दिन उसवास करे, धर्मध्यान से समय व्यतीत करे, दूसरे दिन माहारदानादि देकर स्वयं पारणा करे।
इसी प्रकार पांच पूजा उपवास करके व्रत का उद्यापन करे, उस समय सुपार्श्वनाथ भगवान का विधान करे, महाभिषेक करे, ४६ नैवेद्य के टकड़े चढावे,