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व्रत कथा कोष
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ऊपर लिखे हुये मन्त्रों का अलग अलग जाप्य करना चाहिये और अर्घ भी अलग-अलग चढ़ाना चाहिये, प्रत्येक मन्त्रों को अलग-अलग पुष्प लेकर जाप्य १०८ बार करना चाहिये, १०८ बार णमोकार मन्त्र का जाप्य करना चाहिये, सहस्र नाम पढ़, तत्त्वार्थसूत्र पढ़े, व्रत कथा पढ़े।
एक थाली में अर्घ्य लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, व्रत के समय ब्रह्मचर्य पालन करे, सत्पात्रों को दान देवे ।
इस प्रकार शक्ति अनुसार प्रत्येक महिने के ४ से १० पर्यन्त पूजा व उपवास करे, मन्त्रानुसार पूजा व उपवास पूर्ण होने पर व्रत का उद्यापन करे, उस समय उद्यापन करे, उस समय कर्मदहन विधान करे, महाभिषेक भगवान का करे, चतुर्विध संघ को दान देवे, मन्दिर में आवश्यक उपकरण देवे, एक प्रतिमा सिद्ध भगवान की लाकर प्रतिष्ठा करावे।
कथा
राजा श्रोणिक और रानी चेलना की कथा पढ़े ।
कर्मनिर्जरा व्रत आश्विन शुक्ल ५ के दिन व्रत ग्रहण जिसने किया है ऐसा व्रतीक प्रासुक पानी से स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मन्दिर जावे । मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा देकर ईर्या पथ शुद्धि क्रिया करता हुया भगवान को भक्ति से नमस्कार करे । व्रतमण्डप को शृगारित करके ऊपर चंदोवा बांधे, मण्डप वेदी के ऊपर पांच वर्षों से अष्टदल कमल यन्त्र बनावे, उसके सामने चतुरस्त्र पंचमण्डल निकाले, मण्डल वेदिका के ऊपर पाठ मंगल कलशों को सजाकर रखे । अष्ट मंगल द्रव्य रखे । मण्डल के मध्य में एक सुशोभित कुम्भ रखें । एक थाली में पांच पान पृथक् २ रखकर उन पानों पर गन्ध, अक्षत, पुष्प, फलों को रखकर उस थाली को उस कुम्भ पर रखे । उसके बाद अभिषेक पीठ पर पंचपरमेष्ठि की प्रतिमा यक्षयक्षिणि सहित स्थापित कर पंचामताभिषेक करे । भगवान के प्रागे एक पाटा पर पांच स्वस्तिक निकाल कर इन स्वस्तिकों पर पान पृथक्-पृथक् रखे । उसके ऊपर गन्ध, अक्षत, पुष्प, फलादि