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व्रत कथा कोष
और उज्जयनी नगर में वैश्य की लड़की के घर में उत्पन्न हुई। उसके जन्म लेते ही मां-बाप दोनों ही मर गये । तब एक गृहस्थ ने उसका पालन-पोषण किया । जब वह पांच वर्ष की हुई तब वह पालन करने वाला भी मर गया । फिर श्रीमती एक आर्यिका के निकट उसका पालन होने लगा, लोग उसको कर्मी नाम से पुकारते थे।
प्रागे एक दिन उस गांव के मन्दिर में श्र तसागर नामक महाऋद्धिधारी चारण मुनिश्वर आये, नगर के लोग उन मुनिराज के दर्शन के लिए गये । तब वह कर्मी भी वहां गई । सब लोग मुनिराज की प्रदक्षिणा देकर धर्मोपदेश सुनने के लिए वहाँ बैठ गये, तब वहीं कर्मी मुनिराज के चरणों में पड़कर रोने लगी, मुनिराज अपने अवधिज्ञान से उसका भवान्तर जानकर कहने लगे कि हे कन्ये ! तुमने पूर्व भव में एक मुनिराज के ऊपर गोबर डाला था न, उस पाप से ही तुमको ये दुःख भोगने पड़ रहे हैं, इसके कारण ही तुम्हारे माता-पिता व पालन करने वाले मर गये हैं । अब तुम इस कर्मनिर्जरा के लिए, कर्मनिर्जरा व्रत यथाविधि पालन करो और व्रत का उद्यापन करो, तब तुम को ऐहिक सुख के साथ परमार्थिक सुख की भी प्राप्ति होगी। ऐसा कहकर मुनिराज ने व्रत की विधि भी कह सुनाई।
___ लड़की ने व्रत को भक्तिपूर्वक ग्रहण किया। मुनिराज वहां से चले गये। कर्मी कुमारी ने श्रावक-श्राविकाओं के सहारे से व्रत को पालन करना प्रारम्भ किया। एक दिन उज्जयनी नगरी के राजा का राजकुमार अकस्मात मर गया, उस समय तक उसका विवाह नहीं हुआ था और सर्प के काटने से मरा था इसलिए राजकुमार की माता को बहुत दुःख हुआ । रानी अपने पति को कहने लगी कि हे राजन !
आप अपने पुत्र का विवाह संस्कार हुये बिना दहन-क्रिया नहीं करना, तब राजा ने मन्त्री को बुलाकर कहा कि हमारे लड़के का विवाह हुए बिना दाह-संस्कार नहीं होगा, इसलिए किसी कन्या की खोज करके लाना चाहिए।
तब मरे हुए राजकुमार को कन्या कौन देगा विचार करते हुए, सब लोग चिन्तामग्न हुए, तब मन्त्रियों ने एक गाड़ी में सुवर्ण-रत्नादि भरकर नगर में सूचना करवाई कि राजा के मरे हुए पुत्र को जो कोई अपनी कन्या देगा, उसको यह सारा धन दिया जायेगा। ऐसी सूचना करते-करते सेवक लोग मन्दिर के निकट में आये ।
यह सूचना कर्मी ने भी सुनी और आर्यिका माताजी के पास जाकर कहने