________________
१८६ ]
व्रत कथा कोष
में मात्र चतुविध प्रहार दानादि श्री संघ को देवे । इस व्रत को चौदह अष्टमी को करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
कथा
में भूषण नाम का एक विशाल देश है, उस देश शहर है, इस शहर में वज्रसेन नाम का राजा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में भूमितिलक नाम का एक सुन्दर राज्य करता था, उसकी रानी का नाम भूषरणा था ।
एक दिन नगर के उद्यान में चन्द्र व वरचन्द्र नामक दो चारण ऋद्धिधारी मुनिश्वर पधारे। ऐसा समाचार वनपाल से सुन, राजा ने मुनिराज को परोक्ष नमस्कार किया, और नगरवासियों के साथ उद्यान में गया । चारणऋद्धि मुनिश्वरों को नमस्कार करके वहां नजदीक में बैठ गया । कुछ समय धर्मोपदेश सुनकर राजा की पट्टरानी भूषणा हाथ जोड़कर नमस्कार करके मुनिराज को कहने लगी कि हे गुरुदेव, मेरे संतान नहीं है, इसका क्या कारण है ?
तब मुनिराज ने कहा कि हे बेटी ! तुमने पूर्व भव में कनकमाला की पर्याय में व्रत को धारण कर पूर्ण पालन नहीं किया । बीच में ही व्रत छोड देने से ही तुम को पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ, अगर तुम को संतान चाहिए तो तुम इन्द्रध्वज व्रत को विधिपूर्वक करो, तब तुम को इन्द्र के समान प्रभावशाली पुत्र रत्न उत्पन्न होगा, ऐसा कहकर मुनिराज ने व्रत की विधि कह सुनाई, ऐसा सुनकर बहुत आनन्द हुआ । भूषरणा देवी ने गुरु को नमस्कार करके व्रत ग्रहण किया ।
नगर में वापस आये, अच्छी तरह से व्रत को पालन करने लगी। थोड़े ही दिनों में रानी को इन्द्र के समान एक पुत्र उत्पन्न हुना, राजा रानी बहुत काल पर्यन्त सुख का अनुभव करते रहे । कमशः स्वर्ग सुख की प्राप्ति करके मोक्ष सुख को प्राप्त किया ।
इस व्रत में मात्र नैवेद्य चढ़ाने के क्रम को छोड़कर बाकी जाप्य, पूजा प्रादि सब मोक्षलक्ष्मी व्रत के समान ही हैं ।
एकावली व्रत की विधि और फल
किनाम एकावलीव्रतम् ? कथं च विधीयते व्रतिके: ? श्रस्य कि
फलम् ?