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व्रत कथा कोष
लेली । दीक्षाकल्याणक मनाने भी देवराज देवों सहित आये थे। भगवान दीक्षा लेकर छह महिनों का योग धारण कर खड़े हो गये । ....
छह महिने का योग पूरा होने पर प्रादिप्रभु आहार के लिए ग्राम, नगर, खेड़ा प्रादि में घूमने लगे । लोगों को आहारचर्या मालूम नहीं होने से कन्या, वस्त्र. प्राभरणादि लेकर भगवान को भेंट करने लगे, भगवान आगे बढ़ते गये और कुरु जंगल देश में पहुंचे । उस देश में हस्तिनापुर नगर में कुरूवंश शिरोमणि सोमप्रभ राजा राज्य करता था।
__उस राजा का श्रेयांस नामक एक भाई था, वह श्रेयांस सर्वार्थसिद्धि से आकर जन्मा था। एक दिन कुमार श्रेयांस रात्रि में सो रहे थे, पिछले पहर में कुमार श्रेयांस को शुभ स्वप्न आये, मन्दिर, कल्पवृक्ष, सिंह, वृषभ, चन्द्र. सूर्य, समुद्र, आठ मंगल द्रव्य अपने राज्य प्रासाद के आगे स्वप्न में दिखे । प्रातः उठकर उन स्वप्नों को राजकुमार श्रेयांस ने अपने बड़े भाई को कह सुनाया ।
राजा ने पुरोहित को बुलाकर स्वप्नों के फलों को पूछा । पुरोहित ने कहा कि हे राजन आपके घर किसी महापुरुष का आगमन होने वाला है ।
यह सुनकर सब को आनन्द हुआ।
इधर आहार के लिए आदि भगवान घूमते २ राज्य महल के सामने आते हुए दिखे । श्रेयांस को भगवान दिखते ही मूर्छा आ गई, और तत्क्षण जाति-स्मरण हो गया, और ज्ञान के अन्दर मालूम हुआ कि दश भव के पहले ये वज्रजंघ और मैं इनकी श्रीमती रानी थी, हम दोनों ने जंगल में चारणऋद्धि मुनिश्वर को आहार दिया था, इस निमित्त से आहारदान विधि का ज्ञान हो जाने पर आदिनाथ प्रभु को श्रेयांस ने तीन प्रदक्षिणा दी, प्रतिग्रहण करके भगवान को घर में प्रवेश कराया, नवधाभक्तिपूर्वक भगवान को इक्षुरस का आहार दिया, आहार निरन्तराय होने पर देवों ने आनन्दित हो कर राजांगण में पंचाश्चर्य वृष्टि किया, यह देखकर सब को बहुत ही आनन्द हुया । जिस दिन भगवान आदिनाथ का पाहार राजा श्रेयांस के यहाँ हा, उस दिन वैशाख शुक्ला तृतीया थी। इसलिए इस तिथि का नाम अक्षय तृतीया के नाम से पड़ गया।