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व्रत कथा कोष
दृष्टि हैं संघ को बुलाकर प्रदेश दिया कि कोई भी नगर से दर्शनार्थ आवे कोई भी मुनि उनको आशीर्वाद न देवे न वार्तालाप ही करे, यह सुनकर सभी मुनि ध्यानस्थ हो गये । नगरवासी लोग दर्शन करके जाने लगे, राजा ने नगर में, नगरवासियों की हलचल देखकर चारों मन्त्रियों से पूछा कि ग्राज कौनसा त्यौहार है, नगरवासियों में बहुत हलचल है, लोग कहां आ रहे जा रहे हैं ।
तब मन्त्री लोग कहने लगे कि नगर के उद्यान में दिगम्बर नंगे साधु प्राये हैं, तब राजा कहने लगा कि चलो मैं भी दर्शन करने जाऊंगा, सुनते हैं दिगम्बर साधु बहुत ज्ञानी ध्यानी तपस्वी होते हैं, तब मन्त्री लोग कहने लगे कि राजन, ये नंगे लोग दर्शन के लायक नहीं होते, निर्लज्ज होते हैं, कभी स्नान नहीं करते, उनके शरीर में दुर्गन्ध प्राती रहती है ।
तब राजा कहने लगा कि कुछ भी हो मैं तो दर्शन के लिए अवश्य जाऊंगा तब मन्त्री चुप हो गये और राजा के साथ मन्त्री लोग भी गये, उद्यान में जाकर राजा ने प्रत्येक मुनि को पृथक् २ नमस्कार किया, लेकिन किसी मुनिराज ने राजा को आशीर्वाद नहीं दिया, राजा ने देखा कि सभी मुनिराज ध्यानस्थ हैं, दर्शन कर प्रभावित होकर वापस नगर को लौट रहा था । तब मन्त्रियों ने राजा को भड़काने की कोशिश करते हुए कहा- - श्राप राजा हो, राजा होकर भी इन मुनियों को आपने नमस्कार किया तो भी इन लोगों ने आपको आशीर्वाद भी नहीं दिया । हमने कहा था न ये लोग व्यवहारशून्य रहते हैं, 'मुर्खजती मौनगहे' वाली कहावत के अनुसार ये लोग कुछ बोलना ही नहीं जानते, ज्ञानशून्य रहते हैं प्रादिप्रादि ।
गुरु
इतने में एक श्रुतसागर मुनिराज जिन्होंने की आज्ञा नहीं सुन पाई थी, पहले ही प्रहारचर्या के लिए निकल जा चुके थे । प्रहार करके वापस लौट रहे थे, देखकर मन्त्री लोग राजा को कहने लगे कि हे राजन देखो यह एक तरुण बैल मठा पीकर श्रा रहा है । इस प्रकार के वचन सुनकर और यह जानकर कि ये लोग मिथ्यादृष्टि हैं, तब मुनिराज भी चुप नहीं रहे और वादकर चारों ही मन्त्रियों को बाद में जीत लिया । राजा को बड़ी प्रसन्नता