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व्रत कथा कोष
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अर्थ- इस प्रकार पूक्ति अनन्त चतुर्दशी व्रत भी काम्यव्रत हैं। काम्यव्रतों के पालन करने से दुःख दरिद्रता, शोक-व्याधि प्रादि दूर हो जाती हैं और धन, धान्य, ऐश्वर्य आदि की वृद्धि होती है । चन्दनषष्टी और लब्धिविधान व्रतों को भी काम्यव्रत होने से इनका पालन करने पर पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, ऐश्वर्य, विभूति प्रादि की वृद्धि होतो है । विधिपूर्वक काम्यव्रतों के आचरण से इष्ट सिद्धि होती है । रोग, शोक, व्याधि, आपत्ति आदि दूर हो जाती हैं। अधिक क्या, काम्यव्रतों के प्राचरण से देव दास बन जाते हैं, सभी प्रकार की कामनाए सफल हो जाती हैं।
____तात्पर्य यह है कि काम्यव्रत शब्द का अर्थ ही है कि जो व्रत किसी कामना से किया जाता है तथा किसी प्रकार की अभिलाषा को पूर्ण करता है, वह काम्य है । इस प्रकार काम्यव्रतों का वर्णन पूर्ण हुआ।
अकाम्यव्रतों का वर्णन अथाकाम्यं लक्षणपंक्तिसंज्ञक मेरुपंक्तिसंज्ञक नन्दीश्वरपंक्तिसंज्ञक पल्यव्रत विधानमित्यादिकं ज्ञयम् । प्रार्षग्रन्थेषु कथाकोषादिषु स्वरूपं ज्ञातव्यम् । अत्र तु विस्तारभयान प्रतन्यते, इति अकाम्यानि समाप्तानि ॥
अर्थ :--लक्षणपंक्ति, विमानपंक्ति, मेरुपंक्ति, नन्दीश्वरपंक्ति, पल्यव्रत विधान आदि अकाम्यव्रत हैं । आर्ष ग्रन्थ कथा कोष आदि में इनका स्वरूप बताया गया है, वहीं से अवगत करना चाहिए । यहां विस्तार-भय से नहीं लिखा गया है । इस प्रकार अकाम्य व्रतों का निरूपण समाप्त हुया ।
विवेचन :- स्वर्ग के विमानों में ६३ पटल है । एक-एक पटल की अपेक्षा चार-चार उपवास और एक-एक बेला करना चाहिए। इस प्रकार ६३ पटलों की अपेक्षा कुल २५२ उपवास और ६३ बेला तथा अन्त में एक बेला करके व्रत की समाप्ति कर दी जाती है । इस व्रत को समाप्त करने में ६६७ दिन लगते है । यह लगातार किया जाता है । यों तो इसका प्रारम्भ किसी भी महीने में किया जा सकता है, पर श्रावण से इसे प्रारम्भ करना अच्छा होता है । यदि श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को प्रारम्भ किया तो प्रथम उपवास, अनन्तर पारणा, द्वितीय उपवास, अनन्तर पारणा, तृतीय उपवास, अनन्तर पारणा, चतुर्थ उपवास, अनन्तर पारणा, इसके पश्चात् एक वेला उपवास किया जायेगा । इस प्रकार चार उपवास चार पारणाए और एक बेला