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व्रत कथा कोष
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कुछ समय के बाद रानी हाथ जोड़कर नमस्कार करती हुई मुनिराज को कहने लगी कि हे गुरो! मुझे परम सुख का कारण कोई एक व्रत दो जिससे मेरा भव निवारण हो, तब मुनिराज कहने लगे कि हे रानी ! तुम कल्याणमाला व्रत करो, तुम्हारे लिये यही योग्य है और व्रत की विधि कह सुनाई, रानी ने श्रद्धा भक्ति से व्रत को ग्रहण किया और वापस घर को आ गई । नगर में आकर यथाविधि व्रत को पालन किया, व्रत का उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से दोनों स्वर्ग में गये, पुनः मनुष्य जन्म पाकर जिनदीक्षा ग्रहण की और मोक्ष में गये, यह इस व्रत का फल है ।
अथ कल्पकुज व्रत कथा तीनों अष्टाह्निका के अन्दर कोई भी अष्टाह्निका के ८ अष्टमी को व्रत धारण करने वाला स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा सामग्री लेकर जिन मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, प्रभेषक पीठ पर भगवान को स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत, गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणो और क्षेत्रपाल को अर्घ्य चढ़ावे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं अष्टोत्तर सहस्रनाम सहित जिनेन्द्राय यक्षयक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से पुष्प लेकर १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, पुष्प माला भगवान के चरणों में अर्पण करे, एक थाली में अर्घ्य लेकर नारियल रखे, अर्घ्य हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारता हुआ, अर्घ्य भगवान को चढ़ा देवे, उस दिन उपवास करता हुआ ब्रह्मचर्य का पालन करे, सायंकाल में घी के दीपक से भगवान की आरती उतारे । इसी प्रकार चतुर्दशी पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करे, पूर्णिमा को व्रत का उद्यापन करे, उद्यापन के समय जिनेन्द्र प्रभु का महाभिषेक करे, २४ पूरनपुडी बनाकर २४ तीर्थंकर प्रभु को चढ़ावे, बारह जिनवाणी को चढ़ावे, मुनिश्वर को आहार दानादि देवे, फिर स्वयं पारणा करे ।
कथा इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में आर्यखंड है, उसमें भूमिभूषण नाम का एक देश है, उस देश में भूमितिलक नाम का नगर है । उस नगर के उद्यान में मतिसागर