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व्रत कथा कोष
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तब वे चारों ही कहने लगे, हमारा वचन भण्डार में रहे जब आवश्यकता होगी तब मांग लेंगे, इस प्रकार राजा को प्रभावित कर स्थान पा लिया और हस्तिनापुर में रहने लगे। कुछ दिनों बाद प्राचार्य प्रकम्पन का संघ भी विहार करता हुमा हस्तिनापुर के उद्यान मे आ पहुंचा । नगरवासियों को समाचार प्राप्त होते ही नगरवासो दर्शनार्थ उमड़ पड़े, चारों मन्त्रियों को भी यह समाचार प्राप्त हुआ कि वही संघ यहां भो आ गया है । तब विचार करने लगे कि अब क्या करना चाहिए, राजा यहां का जैन है । हमारा रहस्य राजा के सामने खुल जायेगा तो राजा हम को प्रारणदण्ड दिये बिना नहीं रहेगा, संघ के आगमन का समाचार पाने के पहले ही सात दिन का राज्य प्राप्त कर मुनियों को मारने का उपाय करना चाहिए।
ऐसा विचार कर शीघ्र ही राजा के पास गये और कहने लगे-हे राजन हमारा वचन भण्डार में है, उसकी पूर्ति कीजिए । राजा ने कहा मांगो क्या मांगते हो ? उन चारों ने ही राजा से कहा हम को सात दिन के लिए राज्य दीजिए । राजा तथास्तु कहकर सिंहासन छोड़ अंतपुर में जाकर रहने लगा। इधर दुष्ट मंत्री राज्य पाकर मुनिसंघ के ऊपर उपसर्ग करने का उपक्रम करने लगे, उद्यान में जाकर सब मुनियों को घेरकर बाड़ा करवा दिया, चारों ओर दुर्गन्धित पदार्थ डलवाकर आग लगा दी। संघ के ऊपर उपसर्ग आया जान सर्व मुनिराज समाधि धारण कर ध्यानस्थ हो गये। मुनिसंघ के ऊपर घोर उपसर्ग प्रारम्भ हो गया ।
मिथिलापुरी के उद्यान में श्र तसागर नामक मुनि रात्रि में ध्यान कर रहे थे । रात्रि आकाश में श्रवण नक्षत्र कांपते हुए देखकर अवधिज्ञान से हस्तिनापुर में होने चालो घटना को जान लिया उसी समय हाय-हाय करने लगे, समीप में बैठे हुए क्षुल्लक पुष्पदंत सागर ने आकर पूछा भगवान यह क्या, पाप दुःखपूर्ण वचन वयों उच्चारण कर रहे हो, क्या कारण है ? तब श्रुतसागर मुनिश्वर ने सब हाल कह सुनाया और कहा तुम शीघ्र ही धरणीधर पर्वत पर जहां विष्णुकुमार मुनि ध्यान कर रहे हैं, वहां जानो, वो विक्रिया ऋद्धि से सम्पन्न हैं इस उपसर्ग को वो ही दूर कर सकते हैं।
क्षुल्लक रात्रि में उसी समय धरणीधर पर्वत पर आकाश गामिनी विद्या की सहायता से पहुंचा और विष्णुकुमार मुनिश्वर को हस्तिनापुर में