________________
१६४ ]
व्रत कथा कोष
सिंधुकेतू पुरोहित उसकी स्त्री सिंधुशीला, सिंधुदत्त श्रेष्ठी उसकी स्त्री सिंधुदत्ता पूरा परिवार सुख से रहता था । एक बार उन्होंने सिंधुसागर मुनि के पास यह व्रत लिया उसका विधिपूर्वक पालन किया, सर्वसुख को प्राप्त किया, अनुक्रम से मोक्ष गए।
अथ उच्छवासपर्याप्तिनिवारण व्रतकथा व्रत विधि :-पहले के समान करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि वैशाख कृष्ण ५ के दिन एकाशन करे । ६ के दिन उपवास पूजा आराधना व मन्त्र जाप आदि करे।
कथा
राजा श्रोणिक और रानी चेलना की कथा पढ़े।
उत्तरायण व्रत कथा विधि-माघ शुक्ल १४ को एकाशन करके पूर्णिमा को प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध हो, मन्दिर में जावे, तीन प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार करे, नंदाद्वीप जलावे, (अखण्ड), पद्मप्रभ तीर्थंकर व यक्षयक्षि की प्रतिमा सहित प्रतिमा का अभिषेक करे । अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्ष-यक्षी व क्षेत्रपाल की पूजा करे, नैवेद्य चढ़ावे।
___ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं पद्मप्रभतीर्थकराय कुसुम वरयक्ष, मनोवेगादेवी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मंत्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, सहस्र नाम पढ़े, व्रत कथा पढ़े, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, दूसरे दिन सत्पात्रों को दान देवे, स्वयं पारणा करे।
इस प्रकार प्रत्येक महिने की पूर्णिमा को करे, इस प्रकार छह पूर्णिमा तक व्रत का पालन करके अन्त में उद्यापन करे, उस समय पद्मप्रभ तीर्थंकर का विधान करे, महाभिषेक करे, ६ मुनियों को व आयिका को दान देवे ।
कथा राजा श्रोणिक व रानी चेलना ने इस व्रत को पालन किया।