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व्रत कथा कोष
है । दान, अध्ययन, उपवास और अनुष्ठान इन चारों कार्यों के लिए षष्ठांश प्रमाण तिथि के अतिरिक्त विधेय वस्तुओं का मान भी षष्ठांश ही कहा है। अर्थात् दान उपार्जित सम्पत्ति का षष्ठांश देना चाहिए । अध्ययन - समस्त अहोरात्र प्रमाण का षष्ठांश मात्र अध्ययन - स्वाध्याय में अवश्य लगाना चाहिए । उपवास के लिए भी विहित तिथि का समस्त तिथि के षष्ठांश प्रमाण होना आवश्यक है । अनुष्ठान में विधान प्रतिष्ठा, मन्त्रसिद्धि आदि में संचित सम्पत्ति का षष्ठांश खर्च करना चाहिए । तथा अपने समय के छठें भाग को शुभोपयोग में बिताना आवश्यक है । अत एव काष्ठसंघ के आचार्यों ने व्रत के लिए विहित तिथि का उदयकाल में दस घटी प्रमाण मानने के लिए जोर दिया गया है । इससे कम प्रमाण तिथि के होने पर व्रत नहीं किये जा सकते हैं । यद्यपि स्पष्ट तिथि के प्रमाणानुसार रस घटी से हीनाधिक भी प्रमाण व्रततिथि का हो सकता है, परन्तु ऐसी स्थिति बहुत ही कम स्थलों में आती है । उदाहरण - सोमवार को त्रयोदशी ४० घटी १५ पल है । और मंगलवार को चतुर्दशी २४ घटी २० पल है । अतः मंगल को चतुर्दशी का षष्ठांश कितना हुआ, इसके लिए गणित क्रिया की - ( ६०/१) - (४०/१५)=१६/४५ । (१६/४५) + (३४/३० ) = ५४ / १५ समस्त चतुर्दशी इस का षष्ठांश ५४ / १५ : ६ = ६ / २ / ३० मंगलवार को चतुर्दशी यदि उदयकाल में घटी २ पल ३० विपल हो तो यह तिथि व्रत के लिए ग्राह्य मानी जाएगी।
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षष्ठांश प्रमारण व्रत के लिए उदयकाल में तिथि मानने वाले मत की समीक्षा
काष्ठसंघ का षष्ठांश प्रमाण व्रत के लिए तिथि का मानना तृतीयांश प्रमाण माने गये व्रत की अपेक्षा से उत्तम है । व्यवहारिक दृष्टि से भी ग्राह्य हो सकता है । इसमें व्रतविधि में व्यक्तिक्रम की गुन्जाइश भी नहीं है । यद्यपि छः घटी प्रमाण व्रत तिथि को मान लेने पर, सभी व्रत सम्बन्धी विधान निश्चित तिथि में हो जाते हैं । किसी भी प्रकार की बाधा षष्ठांश तिथिमान में उपस्थित नहीं होती है । परन्तु सब प्रकार से ठीक होने पर भी एक बाधा इस तिथि को स्वीकार कर लेने पर आ ही जाती है । और वह है मानाधिक्य होने से सर्वदा अंकित तिथियों में व्रत नहीं किया जा सकेगा । एकाध बार ऐसा भी समय ना सकेगा, जब उदयकालीन तिथियों को छोड़कर अस्तकालीन तिथियों को ग्रहण करना पड़ेगा ।