________________
व्रत कथा कोष
कथा
इस जम्बुद्वीप के भरतक्षेत्र में आर्य खंड है, उस खंड में महापुर नाम का सुन्दर नगर है, उस नगर में धर्मसेन नाम का राजा था उसको संसार से वैराग्य हा और जिनदीक्षा ग्रहण कर तपश्चरण करने लगा, प्राचाम्ल वर्धन व्रत करने लगा, अन्त में समाधिपूर्वक मरण कर आरण स्वर्ग में देव हुआ । एक दिन मुनिराज को प्राहारदान देकर मुनिराज से पूछा कि गुरुदेव ! मैं किस पुण्य से चक्रवर्ती हुआ हूँ ? तब मुनिराज कहने लगे कि राजन ! तुमने पूर्व भव में मुनि बनकर आचाम्ल वर्धन तप किया था, उसी के पुण्य से आपको यह पद मिला है, तब उसको यह सुनकर बहुत खुशी हुई, उसने पुनः इस व्रत को स्वीकार किया, बाद में दीक्षा लेकर व्रत को अच्छी तरह से पालन कर घोर तपश्चरण करके मोक्ष प्राप्त किया।
प्रष्ट प्रतिहार्योदय व्रत कथा फाल्गुन शुक्ला अष्टमी के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर जिन मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, भगवान को नमस्कार करे नन्दीश्वर प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे, चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा यक्षयक्षी सहित का अभिषेक करे, एक पाटे पर आठ स्वस्तिक बनाकर ऊपर आठ पान रखे, प्रत्येक के ऊपर अक्षत, पुष्प, फल, नैवेद्य रखकर जिनेन्द्र की पूजा करे, जयमाला सहित श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे, पंच पक्वान्न चढ़ावे ।
ॐ ह्रीं अहं असिग्राउसा सर्व जिन बिबेभ्यो नमः स्वाहा
इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे । णमोकार मन्त्र का जाप्य करे। व्रत कथा पढे । पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे । उपवास करे अथवा पाठ वस्तुओं से एकाशन करे । सत्पात्रों को दान देवे । दूसरे दिन पूजा करके स्वयं पारणा करे। - इसी प्रकार पूरिणमा पर्यन्त करे । उस दिन रथोत्सव अथवा पालकी पूर्वक यात्रा निकाले । महाभिषेक करे, चैत्र कृष्णा एकम् के दिन जिन पूजा करके पाठ मुनीश्वर को दान देवे, प्रायिका, श्रावक-श्राविका, पुरोहित आदि को भोजन कराकर