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व्रत कथा कोष
वस्त्रादिक दान देवे । इस व्रत को श्रद्धा से पालन करने बाले को तीर्थंकर प्रकृति का
बंध होता है।
कथा
राजा श्रेणिक व रानी चेलना ने इस व्रत को किया था । कथा में उन्हीं का चरित्र पढ़े |
श्रष्टविधव्यंतरदेव कथा
व्रत विधि :- भाद्रपद मास के पहले मंगलवार को एकाशन करना । बुधवार को प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा द्रव्य लेकर जिनालय जायें । मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करें। चंद्र प्रभु तीर्थंकर की प्रतिमा श्यामयक्ष ज्वालामालिनी यक्षी के साथ स्थापित करके पंचामृत अभिषेक करें । अष्टद्रव्य से पूजा करें। एक पाटे पर आठ पान रखकर अक्षत फूल फल नैवेद्य आदि रखना । श्रुत व गणधर की पूजा करके प्रष्टव्यंतर देवों की अर्चना करना । यक्ष यक्षी व ब्रह्मदेव की अर्चना करें ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं चंद्रप्रभ तीर्थंकराय श्यामयक्ष ज्वालामालिनी यक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प चढ़ायें । णमोकार मंत्र का १०८ बार जाप करें । इस कथा को पढ़ें। एक पात्र में आठ पान रखकर उस पर अष्टद्रव्य तथा एक नारियल रखकर महार्घ्य करें, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा करके मंगल आरती करें । उस दिन उपवास करना । सत्पात्र को प्राहारादि दें । दूसरे दिन पूजा व दान करके पारणा करें, तीन दिन ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान करें ।
इस प्रकार प्राठ बुधवार तक पूजा विधि करके अन्त में कार्तिक प्रष्टान्हिका में उद्यापन करें, तब चन्द्रप्रभविधान करके महाभिषेक करें । चतुःसंघ को चतुविध दान दें । आठ जोड़ियों को भोजन कराकर वस्त्रादि देकर सम्मान करें । गरीबों को भोजन करायें |