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व्रत कथा कोष
भावार्थ :- व्रतों का पालन करने वाला गृहस्थ-गीला चमड़ा, हड्डी, मदिरा, मांस, लोहू तथा पीप आदि पदार्थों को देख करके तथा रजस्वला स्त्री, सूखा चमड़ा, हड्डी, कुत्ता, बिल्ली और चाण्डालादि को स्पर्श करके तथा इसका मस्तक काटो, इत्यादि अत्यन्त कठोर रूप (रोने के) शब्दों को, तथा परचक्र के प्रागमनादि विषयक विडवरप्राय शब्दों को सुन करके तथा त्यागी हुई वस्तु को खा करके और खाने योग्य पदार्थ से अशक्य है अलग करना जिसका ऐसे जीते हुए अथवा मरे हुए दो इन्द्रियादि जीवों के भोजन में मिल जाने पर तथा यह खाने योग्य पदार्थ मास के समान है इस प्रकार खाने योग्य पदार्थ में मन के द्वारा संकल्प होने पर भोजन को छोड़ देवे।
व्रतोपयोगी अावश्यकविधियां (१) कोजी-सिर्फ पानी और भात मिलाकर खाना, अथवा सिर्फ चावलों का धोवन या मांड पीना।
(२) प्रांवली-छहों रस के बिना सिर्फ नीरस एक अन्न पानी के साथ लेना ।
(३) बेलड़ी-पानी, भात और मिर्च मिलाकर खाना ।
(४) एकलटाना-मात्र एक वक्त का परोसा हुआ भोजन संतोषपूर्वक लेना।
प्रोषध और उपवास चतुराहारविसर्जनमुपवासः प्रोषधः सकृद्भुक्तिः ।
स प्रोषधोपवासो यदुपोष्यारम्भमाचारति ॥
भावार्थ :-चारों प्रकार के आहार का त्याग करना, सो उपवास है । एक बार भोजन करना सो प्रोषध (एकाशम) है । और उपवास करके पारने के दिन १६ प्रहर बाद प्रारम्भ अर्थात् एक बार भोजन लेना सो प्रोषधोपवास है ।
उपवास के तीन भेद (१) उत्तम उपवास-धारणा के दिन दो प्रहर उपवास की प्रतीक्षा कर १६ प्रहर धर्मध्यान में व्यतीत करना।