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व्रत कथा कोष
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भाई चिलात नाम के अपने पिता द्वारा प्रदत्त राज्य करते थे। इनके राज्यकार्य में अनभिज्ञ होने तथा प्रजा पर अत्याचार करने के कारण प्रजा अप्रसन्न हो गई थी, इसी से सब प्रजा ने मिलकर राज्य-च्युत कर दिया था।
ठीक है, राजा प्रजा पर अत्याचार नहीं कर सकता, वह एक प्रकार से प्रजा का रक्षक (नौकर) ही होता है । क्योंकि प्रजा के द्वारा द्रव्य मिलता है, अर्थात् उसकी जीविका प्रजा के आश्रित है इसलिए वह प्रजा पर नीतिपूर्वक शासन कर सकता है न कि स्वेच्छाचारी होकर अन्याय कर सकता है। उसका कर्तव्य है कि वह प्रजा की भलाई के लिए सतत प्रयत्न करे, तथा उसकी यथासाध्य रक्षा व उन्नति का उपाय करता रहे, तभी वह राजा कहलाने योग्य हो सकता है, और प्रजा भी तभी उसकी प्राज्ञाकारिणी हो सकती है । राजा और प्रजा का संबंध पिता और पुत्र के समान होता है, इसलिए जब-जब राजा की ओर से अन्याय व अत्याचार बढ़ जाते हैं, तबतब प्रजा अपना नया राजा चुन लिया करती है और उस अत्याचारी अन्यायी राजा को राज्यच्युत करके निकाल देती है ।
इसी नियमानुसार राजगृही की प्रजा ने अन्यायी चिलात नामक राजा को निकाल कर महाराजा श्रेणिक को अपना राजा बनाया और इस प्रकार श्रेणिक महाराज नीतिपूर्वक पुत्रवत् प्रजा का पालन करने लगे।
पश्चात् इनका एक और ब्याह राजा चेटक की कन्या चेलना कुमारी से हुा । चेलना रानी जैनधर्मानुयायी थी और राजा श्रेणिक बौद्ध मतानुयायी था। इस प्रकार यह केर-बेर (केला और बेरी) का साथ बन गया था। इसलिए इनमें निरन्तर धार्मिक वाद-विवाद हुआ करता था। दोनों पक्षवाले अपने अपने पक्ष के मण्डन तथा परपक्ष के खण्डनार्थ प्रबल-प्रबल युक्तियां दिया करते थे । परन्तु “सत्यमेव जयते सर्वदा" की उक्ति के अनुसार अन्त में रानी चेलना ही की विजय हुई। अर्थात् राजा श्रेणिक ने हार मानकर जैनधर्म स्वीकार कर लिया और उसकी श्रद्धा जैनधर्म में अत्यन्त दृढ़ हो गई । इतना ही नहीं किन्तु वह जैनधर्म, देव या गुरुप्रों का परम भक्त बन गया और निरन्तर जैनधर्म की उन्नति में सतत प्रयत्न करने लगा।