________________
१३४ ]
व्रत कथा कोष
शरीर के समस्त वस्त्राभरण उत्तार कर सहर्ष दे दिये, समस्त प्रजाजन परिजनों को साथ में लेकर पैदल ही मुनिराज के दर्शनों को उद्यान में पहुंच गया, मुनिराज के चरणों में नमस्कार करके धर्मोपदेश सुनने के लिये मुनिराज के निकट बैठ गया, धर्मोपदेश समाप्त होने के बाद रानी ने हाथ जोड़कर विनय पूर्वक भक्ति से पुछा हे मुनिराज दयासिन्धु कृपा करके बताइये कि मुझे पुत्रदुःख क्यों हुअा हैं, तब मुनिराज ने कहा हे बेटी, संसारी जीवों को संसार में रहकर नाना प्रकार के दुःख उठाने पड़ते हैं। इसलिये जीव को दयामय धर्म ही शरण है, रानी तुम दुःख करना छोड़ दो और जैसा मैं उपाय बताऊ वैसा कर, तुम अधिक सप्तमी व्रत को भक्ति भाव से करो अन्त में उद्यापन करो, तब तुमको सर्व सुखों की प्राप्ति होगी। इस प्रकार मुनीश्वर के वचन सुनकर रानी को अत्यन्त आनन्द हुअा, रानी ने मुनिराज को कहा कि हे गुरूदेव, कृपा करके मुझे अधिक सातमी व्रत का विधान क्या है ? पूर्ण रूप से बताइये, मैं व्रत का अवश्य पालन करूंगी, मुनिराज ने व्रत की विधि विस्तार पूर्वक कह सुनायी, राजा रानी आदि व्रत की विधि को सुनकर आनन्दित हुए, रानी ने व्रत को स्वीकार किया, घर पर आकर व्रत को अच्छी तरह से पालन किया अन्त में उद्यापन किया, इस व्रत के पालन करने से, राजा रानी को अनेक प्रकार के सुखों की प्राप्ति हुई, पुत्र इच्छा भी पूर्ण हुई, इसलिये हे भव्यों तुम भी अधिक सप्तमी व्रत का पालन करो, तुम्हें भी सर्व सुखों को प्राप्ति होगी ।
अनन्त व्रत विधि अनन्त व्रते तु एकादश्यामुपवासः द्वादश्यामकभक्तं त्रयोदश्यां काजिक चतुर्दश्यामुपवासस्तदभावे यथा शक्तिस्तथा कार्यम् । दिनहानिवृध्दौ स एव कमः स्मर्तव्यः ।
अर्थ-अनन्त व्रत में भाद्रपद शुक्ला एकादशी को उपवास, द्वादशी को एकाशन, त्रयोदशी को कांजी-छाछ अथवा छाछ में जौ, बाजरे के आटे को मिलाकर महेरी एक प्रकार की कढ़ी बनाकर लेना और चतुर्दशी को उपवास करना चाहिए। यदि इस विधि के अनुसार व्रत पालन करने की शक्ति न हो तो शक्ति के अनुसार व्रत करना चाहिए । तिथि हानि या तिथि वृद्धि होने पर पूर्वोक्त क्रम ही अवगत करना चाहिए अर्थात् तिथि हानि में एक दिन पहले से और तिथि वृद्धि में एक दिन अधिक व्रत करना होता है ।