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व्रत कथा कोष
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क्रिया करके सत्पात्रों को दान देकर व्रतिकों को मिष्ठान्नादि भोजन कराकर पुनः दक्षिणा देकर सम्मान किया, इस प्रकार भरतेश्वर ने अपने अनन्त व्रत को पूरा किया। इस प्रकार की व्रतकथा आर्यिका माताजी ने गुणवती को बतायी । आगे उस गुणवती ने अच्छी तरह से व्रत को पाला।
इधर काश्मीर देश में चित्रांगपुर नाम के नगर में बड़ा पराक्रमी गुणवान रूपवान भुजबल नाम का राजा राज्य करता था, वह अपनी धर्मपत्नी के साथ में सुख से कालक्रम कर रहा था।
हस्तिनापुर नगर में सुदर्शन सेठ की पुत्री गुणवती के रूपसौन्दर्य की वार्ता सारे संसार में प्रसिद्ध होने लगी। चित्रांगपुर नगर के राजा को भी यह वार्ता सुनाई दी, सुनकर राजा के मन में भी विचार आया कि मैं उस गुणवती के साथ विवाह करूंगा, तब राजा ने मन्त्री को सुदर्शन सेठ के पास भेजा । मन्त्री सेठ सुदर्शन के पास हस्तिनापुर गया उसके घर जाकर कहा कि हे श्रेष्ठिवर्य आप अपनी सुन्दर कन्या का विवाह हमारे राजा से करो, राजा की बहुत इच्छा है कि आप की कन्या के साथ विवाह हो।
__ तब श्रेष्ठी कहने लगा कि हे मन्त्रीवर आपका राजा मिथ्यादृष्टि व अधर्मी है, इसलिए मेरी कन्या मैं तुम्हारे राजा को नहीं दूंगा।
सेठ मन्त्री की बात सुनकर राजा के पास आया और सब समाचार कह सुनाया, राजा ने गुणवती के लोभ से स्वयं की दासियों विद्यु माला व अनन्तमती को जैनी बनाकर श्राविकावत दिलवाकर दासियों को हस्तिनापुर भेज दिया, दोनों दासियों ने माया से जैनधर्म स्वीकार किया था। और वे दोनों दासियां हस्तिनापुर गई, चैत्यालय में जाकर ठहर गई, दोनों दासियों को देखकर गुणवती ने कहा कि आप दोनों भोजन के लिए हमारे घर चलिये, मायावि दासियां कहने लगी कि आज हमारा उपवास है । गुणवती ने पूछा आपका आज उपवास किसलिये है, आज तो कोई पर्व नहीं है । दासियां कहने लगी कि इस नगर के बाहर नंदकर पवित्र तीर्थ है, तीर्थ का दर्शन कर पारणा करने वाली हैं । गुणवती ने कहा मैं भी आपके साथ उस तीर्थ का दर्शन करने चलूगी, दोनों दासियां खुशी से कहने लगी कि आप हमारे साथ अवश्य