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व्रत कथा कोष
ही मिलता हैं, परन्तु पूरी विधि तीन दिनों में सम्पन्न की जाती है । तीन वर्ष या पांच वर्ष व्रत करने के पश्चात् उद्यापन किया जाता है। ....
अक्षयनिधि व्रत को विधि के सम्बन्ध में विशेषअक्षयनिध्यात्यं व्रतं श्रावणशुक्लपक्षे दशमीदिने दशाब्दमध्यघटोपरिस्थितचतुर्विशतिकायाः स्नपनं पूजनं च कार्यम्, दशवर्षपर्यन्तं व्रतं भवतीति । पुत्रपौत्रादिवृद्धिकरञ्चेति ।
अर्थ :-अक्षयनिधि व्रत में विशेष विधि यह है कि श्रावण शुक्ला दशमी के दिन दस कमलों के ऊपर घड़े को स्थापित कर उसके ऊपर चौबीस भगवान् की प्रतिमाओं को या किसी भी भगवान की प्रतिमा को स्थापित कर अभिषेक और पूजन करना चाहिए । इसी प्रकार भादों वदी दशमी और भादों सुदी दशमी को भी व्रत करना चाहिए । अक्षयनिधि व्रत के दश वर्ष तक करने से पुत्र-पौत्र, धन-धान्य की वृद्धि होती है।
विवेचन :- अक्षयनिधि व्रत के सम्बन्ध में दो मान्यताएं हैं-प्रथम मान्यता श्रावणवदी दशमी; भादों वदी दशमी और भादों सुदी दशमी इन तीन तिथियों में व्रत करने की है । इस मान्यता का प्राचार्य ने पहले वर्णन किया है ।
वत अनिधि का उपयास । श्रावणसुदि दशमी करितास ॥ भादों वद जब दशमी होय । तिनहं के प्रोषध अवलोय ॥ अवर सकल एकन्त जुकरै । सो दस वर्षा हि पूरों करै ॥ उद्यापन करि छांडै ताहि । तांतरिपुगणौ करिहै जाहि ॥
-क्रियाकोश किशनसिंह।
द्वितीय मान्यता के अनुसार यह व्रत श्रावण वदी दशमी में प्रारम्भ किया जाता है तथा भादों वदी दशमी को समाप्त होता है । इसमें दोनों दशमी तिथियों में उपवास तथा शेष तिथियों में एकाशन किये जाते हैं। व्रतारम्भ के दिन दस कमलों के ऊपर केशर,