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व्रत कथा कोष
में चढ़ाने चाहिए । सुपारी, साथिया प्रत्येक अर्ध में लेना चाहिए। यह प्रर्थ्य मांडने के कोठे में चढेगा ।
नोट :- किसी भी व्रतोद्यापन में घटयात्रा ( जल यात्रा ) को कर सकते हैं, घटयात्रा की विधि उपरोक्त ही है, इस विधि को किसी भी व्रत के घटयात्रा में कर सकते हैं । यही घटयात्रा की विधि है ।
श्री श्रादिनाथ जयंति व्रत
चैत्र वदी नवमी दिन जान, उपजे श्रादिनाथ भगवान ।
भावार्थ :- चैत्र वदी नवमी के पवित्र दिन में चौदहवें कुलकर श्री नाभिराज तथा मरुदेवी रानी की पवित्र कूंख से धर्मतीर्थ के प्रवर्तक श्री ऋषभनाथ भगवान् ने अवतार लिया, इस दिन महाभिषेकपूर्वक पूजन विधान व उपवास करे । शास्त्रसभा धर्मोपदेश द्वारा धर्म की खूब प्रभावना करे ।
श्री ह्रीं श्री वृषभनाथाय नमः - इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करें । श्री श्रादिनाथशासनजयंति व्रत
फागुन वदि एकादशि जान, वारणी खिरो श्रादि भगवान ।
भावार्थ :- फाल्गुन कृष्ण ११ के दिन श्री आदिनाथ महात्मा ने घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया और संसार के प्राणियों के हितार्थ अपनी दिव्यध्वनि द्वारा इस दिन प्रथम उपदेश दिया, इसलिये इस पवित्र दिन धर्मप्रभावना करे और उपवास करे ।
'प्रों ह्रीं श्री वृषभाय नमः' इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे । श्री प्रादिनाथ निर्वाणोत्सव व्रत
माघ वदी चौदशि दिन कहो, श्रादिनाथ प्रभु शिवपुर लहो ।
भावार्थ : - माघ वदी १४ के पवित्र दिन श्री श्रादिनाथ भगवान् ने मोक्ष प्राप्त किया था। इस दिन उपवास करे ।
'श्रीं ह्रीं श्री वृषभाय नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे ।