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व्रत कथा कोष
के लिए भी निश्चित तिथि होनी चाहिए तथा पारणा के लिए भी विहित तिथि का . होना आवश्यक है। जैसे किसी व्यक्ति को चतुर्दशी का प्रोषधोपवास करना है । सोमवार को त्रयोदशी ८ घटी २० पल है, मंगल को चतुर्दशी ७ घटी ५० पल है और बुधवार को पूर्णिमा ६ घटी ३० पल है। इस प्रकार की तिथिव्यवस्था होने पर क्या चतुर्दशी का प्रोषधोपवास मंगलवार को किया जा सकेगा और पूणिमा को पारणा हो सकेगी ?
प्रत्येक तिथि का तृतीयांश प्रमाण निकालने के लिए गणित क्रिया की। रविवार को द्वादशी १२ घटी ४० पल है । अतः (अहोरात्र-एकाशन के पूर्व की तिथि) =(६०/०)-(१२/४०) = ४७ २० अनंकित त्रयोदशी तिथि, (अनंकित तिथि + अंकित तिथि)=(४७/२०) + (८/२०) = ५५/४० त्रयोदशी, इसका तृतीयांश = ५५/४० : ३ = १८/३३/२० घट्यादि मान त्रयोदशी का।
. (अहोरात्र-व्रत के पूर्व की तिथि) = (६०/०)-(८/२०) = ५१/४० अनंकित चतुर्दशी (अनंकित + प्रकित चतुर्दशी)= (५१/४०) + (७/५०) =५६/३० समस्त चतुर्दशी, इसका तृतीयांश =५५/४०:३=१८/३३/२० घट्यादि मान त्रयोदशी का है।
(अहोरात्र-व्रत के पूर्व की तिथि) = (६०/०)-(८/२०) =५१/४० अनंकित चतुर्दशी (अनंकित + प्रकित चतुर्दशी) = (५१/४०) + (७/५०) =५६/३० समस्त चतुर्दशी, इसका तृतीयांश ५६/३० ३= १६/५० चतुर्दशी का तृतीयांश ।।
(अहोरात्र-व्रततिथि) = (६०/०)-(७/५०) =५२/१०अनंकित व्रत के बाद को पारणा तिथि; (अनंकित पारणा + अकित पारणा) = (५२/१०) + (६/३०) = ५८/४०, इसका तृतीयांश ५८/४० : ३= १६/३३/१० घट्यादि पूर्णिमा का ।
प्रस्तुत उदाहरण में एकाशन की त्रयोदशी तिथि सोमवार को ८ घटी २० पल है, स्पष्ट मान से तृतीयांश का प्रमाण १८/३३/२० घट्यादि आया है । एकाशन की तिथि का प्रमाण तृतीयांश के प्रमाण से अल्प है, अतः सोमवार को एकाशन नहीं करना चाहिए। क्योंकि उस दिन त्रयोदशी तिथि ही नहीं है । यदि रविवार को एकाशन किया जाता है, तो उदयकाल में १२ घटी ४० पल तक द्वादशी तिथि भी रहती