________________
व्रत कथा कोष
नैशिक व्रतों के लिए मंगलघार की पंञ्चमी ग्राहय नहीं हो सकती है। क्योंकि मंगलवार को उदय के पूर्व पञ्चमी नहीं रहती है; किन्तु सोमवार को उदय के पश्चात् और मंगलवार को उदय के पूर्व हो पञ्चमी रहती है । अतः नैशिक व्रतों के लिए पञ्चमी सोमवार की ग्रहण को जायगो। मूलसंघ के प्राचार्यों ने उदय में रहने वाली छः घटी प्रमाण या इससे अधिक तिथि को देवसिक और नैशिक दोनों ही प्रकार के व्रतों के लिए ग्राह य मान लिया है । इस प्रकार से एक ही प्रकार का तिथि मान स्वीकार कर लेने से पूर्वापर विरोध नहीं आता है तथा तिथि भी व्रत के लिए सब प्रकार से ग्राह य मान ली जाती है । तथा चोक्तं षष्ठांशोपरि कर्णामतपुराणे सप्तमस्कन्धे
"यथोक्तविधिना तिथ्युदये व्रतविधि चरेत्" अखण्डवत्तिमार्तण्डः चद्यखण्डा तिथिर्भवेत् ।
व्रतप्रारम्भरणं तस्यामनस्तगुरुशुकयुत् ॥
अर्थः- कर्णामृतपुराण के सप्तम स्कन्ध में भी कहा गया है कि षष्ठांश मात्र तिथि का प्रमाण व्रत के लिए मानना चाहिए । व्रत की तिथि के दिन कही हुई व्रत विधि के अनुसार व्रत का आचरण करना चाहिए ।
___ जिस दिन सूर्योदय काल में तिथि षष्ठांश मात्र हो अथवा समस्त दिन तिथि रहे, उस दिन वह तिथि अखण्डा/सकला कहलाती है। इस सकला तिथि को गुरू और शक्र के उदय रहते हुए व्रत को ग्रहण करने की क्रिया करनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि व्रत ग्रहण करने और उद्यापन करने के समय गुरू और शुक्र का अस्त रहना उचित नहीं है। इन दोनों ग्रहों के उदित रहने पर ही व्रतों का ग्रहण और उद्यापन किया जाता है।
विवेचनः--अपनी-अपनी गति से चलने वाले ग्रह सूर्य के निकट पहचते है, तो लोगों को दृष्टि से अोझल हो जाते हैं, इसी का नाम ग्रहों का अस्त होना कहलाता हैं । जब वे ही ग्रह अपनी-अपनी गति से चलते हुए सूर्य से दूर निकल जाते है, तो लोगों को दिखलायी पड़ने लगते हैं और न अस्त केवल सूर्य के प्रकाश से आच्छादित हो जाते हैं तथा सूर्य से आगे पीछे होने पर दृश्य होते हैं ।