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व्रत कथा कोष
रौद्रः श्वेतश्च ततः सारभटोsपि च । दैत्यो वैरोचनश्चान्यो बैष्वदेवोऽभिजित्तया । रोहरणो बलनामा च विजयो नैर्ऋतोऽपि च । वरुणाश्चार्यमा च स्युर्भाग्यः पञ्चदश दिने || सावित्रो धुर्यसंज्ञश्च दात्रको यम एव च । वायुहुताशनो भानुर्वैजयन्तोऽष्टमो निशि ।। सिद्धार्थ: सिद्धसेनश्च विक्षोभ योग्य एव च । पुष्पदन्तः सुगन्धर्वो मुहूर्तोऽन्योऽरूणो मतः ॥ धवला टीका जि० ४ पृ० ३१८-१९ रात्रि में सावित्र, धुर्य, दात्रक, यम, वायु, हुताशन, भानु, वैजयन्त, सिद्धार्थ, सिद्धसेन, विक्षोभ, योग्य, पुष्पदन्त, सुगन्धर्व और अरुण ये पन्द्रह मुहूर्त रहते हैं । प्रत्येक मुहूर्त दो घटी प्रमाण काल तक रहता है । कुछ आचार्य दिन में पांच मुहूर्त ही मानते हैं तथा कुछ छः मुहूर्त । दिन के पन्द्रह मुहूतों में रौद्र, श्वेत, मैत्र, सारभट और दैत्य आदि का गुण और स्वभाव बतलाते हुए कहा गया है कि प्रथम रौद्र मुहूर्त, जो कि उदयकाल में दोघट तक रहता है, खर और तीक्ष्ण कार्यों के लिए शुभ होता है। इस मुहूर्त में किसी विलक्षण असाध्य और भयंकर कार्य को प्रारम्भ करना चाहिए। इस मुहूर्त का आदि भाग शुभ, मध्य भाग साधारण और अन्त भाग निकृष्ट होता है । इस मुहूर्त का स्वभाव उग्र कार्य करने में प्रवीण, साहसी और वंचक बताया गया है । दूसरे श्वेत मुहूर्त का आरम्भ सूर्योदय के दो घटी - ४८ मिनट के उपरान्त होता । यह भी दो घटी तक अपना प्रभाव दिखलाता है । इसका श्रादि भाग साधरण शक्ति हीन पर मांगलिक कार्यों के लिए शुभ, नृत्य गायन में प्रवीण, प्रमोद प्रमोद को रुचिकर समझने वाला एवं आल्हादकारी होता है । मध्य भाग इस मुहूर्त का शक्तिशाली, कठोर कार्य करने में समर्थ, दृढ़ स्वभाव वाला, श्रमशील, दृढ़ अध्यवसायी एवं प्रेमिल स्वभाव का होता हैं । इस भाग में किये गये सभी प्रकार के कार्य सफल होते है । अन्त भाग निकृष्ट हैं ।
तीसरा मुहूर्त सूर्योदय के एक घण्टा ३६ मिनट पश्चात प्रारम्भ होता है । यह भी दो घटी तक रहता है । यह मुहूर्त विशेष रूप से पञ्चमी, अष्टमी और