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व्रत कथा कोष
के कारण त्याज्य है । अत एव क्षयमास होने पर मासिक व्रत करने वालों का एक महिने में दुगुने व्रत करने पड़ेंगे।
दुगुने व्रत करने के लिए क्षयमास के पहिले का महिना ही लिया जाएगा। क्षयमास से आगे का महिना नहीं । जिन व्यक्तियों को मासिक व्रत प्रारम्भ करना है, उन्हें क्षयमास के पूर्ववर्ती महिने से व्रत प्रारम्भ करने चाहिए ।
तिथि का प्रमाण - तिथि प्रमाणं कियदित्युक्त चाह-चतुःपञ्चाशत्घटीभ्यो न्यूना तिथिर्न भवति, अधिका तु सप्तषष्टि घटीप्रमाणं कथितम् । यतः जैनानां त्रिमुहर्तोदय वत्तिनी तिथिः सम्मता, अधिकतिथेः प्रमाणं तु सप्तषष्टिघटी, अहोरात्रप्रमाणं षाष्टिघटी मतमतः सप्तघटिकाभ्योऽधिका पारणादिने पारणा न कर्तव्या, यदा तु चतुःपञ्च घटिकाप्रमाणं प्रपरदिने तिथिः तदा तस्मिन्नेव दिने पारणा कार्या, नान्यत्र ।
अर्थ-तिथि का प्रमाण कितना होता है ? इस प्रकार का प्रश्न करने पर आचार्य उत्तर देते हैं- प्रत्येक तिथि ५४ घटी से कम और ६० से अधिक नहीं होती है । जैनाचार्यों ने उदयकाल में छः घटी प्रमाण तिथि का मान व्रत के लिए ग्राह्य बताया है । तिथि का अधिकतम मान ६० घटी होता है । अहोरात्र का प्रमाण ६० बटी माना जाता है, अतः पहले दिन कोई भी तिथि ६७ घटी से अधिक नहीं हो सकती। अगले दिन वृद्धि होने पर व्रततिथि अधिक से अधिक ७ घटी प्रमाण रहेगी । ऐसी अवस्था में उस दिन व्रत की पारणा नहीं की जाएगी, किन्तु उस दिन भी व्रत रखना होगा। यदि वृद्धिगत तिथि छः घटी से अल्पप्रमाण है तो उस दिन पारणा की जायगी, अन्य दिन नहीं।
विवेचन - गणित के अनुसार तिथि का प्रमाण अधिक से अधिक ६७ घटी और कम से कम ५४ घटी आता है। ५४ घटी प्रमाण से अल्पघटी प्रमाणवाली तिथि का ह्रास या क्षय माना जाता है । यद्यपि सूर्योदय काल में कम तिथियां हो ५४ घटी या इससे अधिक मिलेंगी; क्योंकि एक तिथि की समाप्ति होने पर दूसरी तिथि का प्रारम्भ हो जाता है । वास्तविक बात यह है कि प्रत्येक तिथि का मान गणित से ६० घटी नहीं आता है, जिससे सूर्योदय से लेकर सूर्योदयकाल तक एक ही तिथि रह सके । कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता हैं कि मध्यम मतानुसार