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व्रत कथा कोष
है। यह व्रत भी ३१ दिन तक किया जाता है। इसका प्रारंभ भी भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा - से होता है और व्रत की समाप्ति भी आश्विन कृष्णा प्रतिपदा को बतायी गयी है। मेघमाला व्रत में सात उपवास और चौबीस एकाशन किये जाते हैं । प्रथम उपवास भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा को, द्वितीय भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को, तृतीय भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी को, चतुर्थ भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा को, पञ्चम भाद्रपद शुक्ला अष्टमी को, षष्ठम भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को और सप्तम आश्विन कृष्णा प्रतिपदा को करने का विधान है । शेष दिनों में चौबीस एकाशन करने चाहिए । पांच वर्ष तक पालन करने के उपरान्त इस व्रत का उद्यापन किया जाता है । जितने उपवास बताये गये हैं, उतने ही अभिषेक किये जाते हैं । तथा उपवास के दिन, रात्रि जागरणपूर्वक बितायी जाती हैं और अभिषेक भी उपवास की तिथि को ही किया जाता है । इस व्रत में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन तथा संयम धारण किया जाता है । संयम और ब्रम्हचर्य धारण श्रावण शुक्ला चतुर्दशो से प्रारंभ होता है तथा आश्विन कृष्णा द्वितीया तक पालन किया जाता है।
इस व्रत की सफलता के लिए संयम को आवश्यक माना है। मेघपंक्ति आकाश में आछन्न हो तो पञ्चस्तोत्र का पठण करना चाहिए । इस व्रत का नाम मेघमाला इसलिए पड़ा है क्योंकि इसमें सात उपवास उन्हीं दिनों में करने का विधान है, जिन दिनों में ज्योतिष की दृष्टि से वर्षायोग प्रारंभ होता है। अर्थात् वृष्टि होने या मेघों के आच्छादित होने से उक्त व्रत के सातों ही दिन मेघमाला या वर्षायोग संज्ञक हैं। प्राचार्यों ने इस मेघमाला व्रत का विशेष फल बताया है।
जैनाचार्यों ने मेघमाला व्रत का प्रारंभ तिथिवृद्धि के होने पर भी भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से माना है । तथा इसकी समाप्ति भी आश्विन कृष्णा प्रतिपदा को मानी है । इसमें तीन प्रतिपदाओं का विशेष महत्व है, तथा इन तीनों का प्रमाण भी सोदयदिवस-सूर्योदयकाल मे छः घटी प्रमाण तिथि का होना को ही बताया है । सोलहकारण व्रत के समान तिथिक्षय या तिथिवृद्धि का प्रभाव इस पर नहीं पड़ता है। तिथिवृद्धि के होने पर एक उपवास कभी-कभी अधिक करना पड़ता है। क्योंकि तीनों प्रतिपदाओं का रहना इस व्रत में आवश्यक बतलाया गया है । मेघमाला व्रत के